December 10, 2007

परी की मजार पर


  • रति सक्सेना




ओ अनजानी परी!
तुमने बस पांच दीवारें देखी
छठी नहीं देखी
जो तुम्हारे पैरों के ऐन नीचे है
ज्यादातर लोग अनदेखा कर देते हैं
लेकिन हमारे देश में एक स्‍त्री ने उसे भी भेद दिया था
जबकि उसके पति ने उसे
भेज दिया था पागलखाने में
जिसकी कोई दीवार ही नहीं थी,
इसलिए नहीं कि उसने किसी से प्यार किया
इसलिए भी नहीं कि उसने धोखा दिया
वह इंतजार करती रही उसके लिए चौदह बरस तक
फिर भी छोड़ा पति ने
बहुत सी चीजें ज्यादा अहमियत रखती हैं
आदमी के लिए, मसलन शासन, सिंहासन, जनता

परी! औरत के क्लोरोफिल को कोई नहीं जानता
यहां तक खुद औरत भी नहीं
औरत पीली होती हुई भी खुश रहती है
मुरझाते वक्त भी हंसती है

तुम्हारी छत तुम्हारे कंधों पर टिकी है
तमाम औरतें छतों के ऊपर होते हुए भी
न उड़ रही हैं, न तारे देख रही हैं

उन्होंने तुम्हारे दिल से संगीत को हटाया
देह से नृत्य को,
मेरे आजू-बाजू तमाम औरतें
आंख में पट्टी बांध, पांवों में जंजीरें लाद
हाथों में बेड़ियां पहन नाच रही हैं
खुद को खुश करने को नहीं,
बल्कि उन सब को जो उसकी देह को नाचते देख
मछली खाने का लुत्फ पाते हैं



२.

परी!
अच्छा किया जो तुमने चाभी नहीं मांगी
अच्छा किया जो दरवाजा नहीं खोला
तूफान तुम्हारे दरवाजे को भड़भड़ा कर लौट गया
सांप सपोले नाचते रहे
तुमने अपने सिर के ऊपर की दीवार को सरका
बस झांक लिया आसमान
पूरा का पूरा

हमारे देश में कागज कलम पूजे जाते हैं
लेकिन बस आदमियों के द्वारा
तुम पहली औरत हो
तुम आखिरी औरत हो
तुम अकेली औरत हो,
नहीं, रहने दो... मैं भी हूं तुम्हारे साथ
कागज कलम की चाहना रखने वाली



३.

क्या खोज रही हो तुम?
वही, जो मैं खोज रही हूं काफी दिनों से?
बर्तनों का ढेर चाहिए मुझे
जिससे मांज सकू मैं समाज की गर्द
चाहिए कपड़े, हटा सकूं जर्रा जर्रा मैल
मेरे भी जिगर में हैं
कुछ स्याह निशान मेरे बच्चों के हाथों के

लेकिन मालूम है, मेरे देश में
मुझे हक नहीं मेरे बच्चों पर
क्योंकि बेटियां जनी हैं मैंने

मोमबत्तियां मरती नहीं
मोमबत्तियां जलती हैं,
जलाई जाती हैं



४.

शॉक थेरोपी ।
शॉक थेरोपी ।
हां शॉक थेरोपी ।
क्या कोई और भी शॉक थेरोपी है
तुम्हारी दुनिया में?



५।


तुम कहती हो कि तुमने प्यार किया
उससे जिससे कभी नहीं मिली तुम
अच्छा हुआ कि मिली नहीं
नहीं तो तुम सात जन्म तक
पागल होने की हद तक प्यार नहीं कर पातीं
प्यार एक खिलौना है आदमी के लिए
कभी कदार खेलने के लिए
प्यार पागलपन है औरत के लिए
आत्महत्या की हद तक







ओ परी! मुझे भी दर्द है
तुम्हारी चींटी सहेली के मरने का
तुम समझ सकी उसकी भाषा
या फिर वह ही बोल लेती थी तुम्हारी?

चींटियों की कतार जा रही है
मसालों के डिब्बों पर, चीनी पर चावल पर
मेरे हाथ उठ नहीं पा रहे हैं चींटी मार पाउडर के लिए

मैं खोज रही हूं इस कतार में कौन सी चींटी तुम्हारी सहेली होगी!

किसी पागलखाने में
मेरे लिए
कमरा तो खाली नहीं किया जा रहा है?

जंग का एलान है,
आदमी मर रहे हैं, रेल में, बाजार में, उत्सवों में
घरों में,
मैं चींटी खोज रही हूं
मैं चींटी खोज रही हूं
जो मुझसे बतिया सके
मेरी सहेली बन सके



७.

भूलना बड़ा आसान है परी,
बस शुरू करो कि कहां से भूलना है
रोज याद करो कि क्या क्या भूलना है
लिस्ट बनाओ कि क्या नहीं भूलना है
भूलते भूलते तुम इतना भूल जाओगी कि
कुछ भी याद नहीं रहेगा तुम्हें
भूल के अलावा
देखो मुझे अच्छी तरह से याद है
वह सब, जो मुझे भूलना है
वह, जिसे भूलने की कोशिश
मैंने जी जान से की



८.

किसी मां का दिल भी खोलना परी
उसने भी सोचा होगा किसी और के लिए
उसने भी महसूसा होगा किसी अनजाने को
बस वह पागल नहीं थी तुम्हारी तरह
आलू छीलते छीलते यादों की छीलती रही
कसीदे बुनते बुनते बूटों में रंग भरती रही

यदि मां ने नहीं सोचा होता तो
तुम भी नहीं सोचती परी
किसी के लिए, किसी के भी लिए, परी!

मेरी मां अहिल्या थी
जो पत्थर बनी रही, एक ठोकर की चाह में



९.

तुमने नहीं चाहा, यह तुम्हारी गलती है
उसे यही तो डर था कि
तुमने क्यों नहीं चाहा
यदि तुम भी चाहती आम औरतों की तरह
अंगूठी, कंगन या परिधान
उसे विश्वास हो जाता कि तुम औरत हो
उसे विश्वास हो जाता कि वह मर्द है
फिर शॉक थेरोपी
फिर शॉक थेरोपी
इसका कोई अन्त नहीं



१०.

परी घड़ी के कई सुइयां होती हैं,
दिखती है हमें केवल दो
उनमें भी एक बड़ी एक छोटी होती है
यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम कौन सी चुनो

लेकिन वह तुम्हें चुने या नहीं, यह उसका काम है

तुमने प्यार किया, तभी तुम्हारे जिगर से
कमल खिला
उस कमल पर जब भौंरा मंडराएगा..
देखो हमारे देश के संस्कृत के कवि
कमल के साथ भौंरो के बारे में भी सोचा करते थे
तुम उसे भींच लेना अपनी पंखुड़ियों में
कभी मत करना आजाद

वह देखो कमल खिलने लगा



११.

तुमने अपने पंख काट डाले
लेकिन मैं तो सुनती रही हूं
अपने पिता से
चींटी की जब मौत आती है
तो उसके पर निकलते हैं
तुम बिना पर के ही मर गई
अरे नहीं,
शायद लोगों ने नहीं देखा
तुम तो चल कर गइंर् थी
क्यूपिड के जूतों में



१२.

एक वक्त था, मैं सोचा करती थी तुम्हारी तरह
डरा करती थी पानी से, झरने से समन्दर से
एक दिन समंदर ने मेरे तलवों को चूमा
मुझे लगा कि उससे बड़ा प्रेमी कोई नहीं
मुझे लगा कि उससे पागल प्रेमी कहीं नहीं

समंदर में शार्क हैं तो नन्ही मछलियां भी
सीप, घोंघे भी, लहरों के सपने भी
तुम जब पहुंचो समंदर की तलहटी में
मेरी ओर से चुम्बन दे देना उसके अंगूठों पर
उन सब चुम्बनों के एवज में
जो वह देता रहा मुझे जिन्दगी भर



१३.

कवि देखा है मैंने परी तुममें
कवि देखा है, तुम्हारी सहेली ने तुममें
कवि देख रहे हैं हम सभी तुममें परी
हम क्यों मरे उनके लिए, जो
नहीं जी सकते हमारे लिए..
तुम बुझ गई मोमबत्ती की तरह
तुम झड़ गई फूल की तरह
किन्तु तुम्हारी सुगन्ध
फैल रही है दुनिया में..

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