December 24, 2007

बांग्लादेश में सैनिक सत्ता

समकाल
  • पंकज पराशर

पाकिस्‍तानी कवयित्री फहमीदा रियाज की नज्म़ है 'तुम भी हम जैसे निकले`। यह नज्म़ उन्होंने भारत को लक्षित करके दिल्ली में सुनाई थी लेकिन करिश्मा देखिये कि यह भारत पर तो नहीं, अलबत्ता पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश पर बिल्कुल फिट बैठ रही है। पाकिस्तान के सैनिक हुक्मरान परवेज मुशर्रफ ने जिस चालाकी से तख्त़ा पलट किया उसी चालाकी से उन्होंने इस रणनीति को भी कामयाबी से अंजाम दिया कि बेनजीर भुट्टो लंदन में निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हैं और मियां नवाज शरीफ पूरे परिवार सहित सउदी अरब में अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर की तरह 'दो गज जमीं भी न मिली कूए यार में` रट रहे हैं। इधर मुशर्रफ साहब अमेरिका और आई.एस.आई दोनों को साध करके सत्ता पर काबिज हैं और न्यायपालिका से भी दो-दो हाथ करने से गुरेज नहीं करते। नाटक की पटकथा वही है लेकिन बांग्लादेश के पात्र और हालात थोड़े अलग हैं। वहां की अंतरिम सरकार के निर्देश पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पर ही रोक दिया गया। जनवरी में जब अंतरिम सरकार ने देश में आपात काल की घोषणा की तो शेख हसीना देश छोड़कर ब्रिटेन चली गइंर् थीं और अब बेगम खालिदा जिया को भी परिवार सहित देश छोड़कर जाने को मजबूर किया जा रहा है। ताजा खबरों के मुताबिक खालिदा जिया देश छोड़कर जाने को तैयार हो गई हैं। पिछले महीने बेगम खालिदा जिया के बड़े बेटे तारीक रहमान को गिरफ्तार किया गया था और उसके बाद अभी कुछ ही दिनों पूर्र्व खालिदा जिया के दूसरे बेटे अराफात रहमान को भी उनके ढाका स्थित घर से गिरफ्तार कर लिया गया है।

११ जनवरी, २००७ को बांग्लादेश में आपातकाल लागू किया गया था और इस वक्त वहां भ्रष्टाचार विरोधी अभियान तेजी से चल रहा है, जिसके तहत वहां की अंतरिम सरकार ने अब तक ३० पूर्व मंत्रियों, राजनीतिक सलाहकारों, व्यापारियों और नौकरशाहों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया है और उनके बैंक खाते सील कर दिए हैं। हिरासत में लिए गए लोगों में पूर्व मंत्री और दोनों प्रमुख दलों-बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी और अवामी लीग के नेता शामिल हैं। गिरफ्तार लोगों में पूर्व मंत्री नजमुल हुदा, सलाहउद्दीन चौधरी, अमानुल्लाह अमान, रुहुल कुद्दुस तालुकदार, मीर नसीरउद्दीन और इकबाल हसन मसूद शामिल हैं। हालांकि इन लोगों को हिरासत में लेने की कोई वजह नहीं बताई गई है। यहां यह याद रहे कि जनवरी में आपातकाल लागू होने के बाद पहली बार नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। इन गिरफ्तारियों के बाद की स्थिति यह है कि बांग्लादेश की जनता अंतरिम सरकार की इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का खुला समर्थन कर रही है और ऐसा लगता है कि अंतरिम सरकार के इस कदम से वहां की आम जनता राहत ही महसूस कर रही है।

बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार ने अक्तूबर, २००६ में अंतरिम सरकार को सत्ता सौंपी थी और इस अंतरिम सरकार को पहले राष्ट्रपति इफिताखार चौधरी संभाल रहे थे लेकिन अंतरिम सरकार के कई विवादास्पद फैसलों की वजह से वहां तीव्र विरोध प्रदर्शन हुए जिसके बाद इफिताखार चौधरी ने अपने पद से त्यागपत्र देकर फखरुद्दीन अहमद की अंतरिम सरकार के नये मुखिया के रूप में शपथ दिलवा दी थी। बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त एम.ए.अजीज ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि अंतरिम सरकार ने चुनावी प्रक्रिया से जुड़े सभी विवादास्पद अधिकारियों को इस्तीफा देने के लिए कहा था। नये चुनाव आयुक्त ए.टी.एम.शम्सुल हुदा ने कहा है कि देश में चुनाव करवाने से पहले नए निर्वाचन कानून और नई मतदाता सूची बनाने की जरूरत है इसलिए चुनाव करवाने में कम-से-कम १८ महीनों का वक्त लग सकता है।

तेजी से बदलते घटनाक्रमों के बीच दिलचस्प यह है कि बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष ने कहा है कि देश को चुनावी लोकतंत्र की दिशा में वापस नहीं जाना चाहिए। लोकतंत्र की वजह से भ्रष्टाचार, मानवाधिकार हनन और अपराधीकरण बढ़ा है जिसने देश के वजूद के लिए खतरा पैदा कर दिया है। सेनाध्यक्ष के इस बयान के बाद इस आशंका की पुष्टि होती दिखाई दे रही है कि बांग्लादेश में सैनिक शासन की योजना तो नहीं बनाई जा रही? जनरल ने यह खुलासा नहीं किया कि आखिरकार वे कैसी व्यवस्था चाहते हैं? गौरतलब है कि इस वक्त बांग्लादेश में जो अंतरिम सरकार कायम है उसे पूरी तरह सेना का समर्थन हासिल है। इसी कड़ी में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के कहने पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट पर ढाका जानेवाले विमान पर नहीं चढ़ने दिया गया। सरकार ने पहले ही कह दिया था कि अगर शेख हसीना देश पहंुचती हंै तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। सरकार ने पिछले साल अक्तूबर में चार प्रदर्शनकारियों की हत्या के मामले में उनके ऊपर मामला दर्ज किया है और उन पर हत्या की कथित साजिश रचने का आरोप लगाया है। अंतरिम सरकार की इस कार्रवाई पर शेख हसीना ने कड़ा एतराज जताया है और हुंकार भरते हुए कहा है कि 'स्वदेश लौटने से रोकना मेरे नागरिक अधिकारों का हनन है। मैं अपने देश लौटना चाहती हूं।` उनके इस बयान के एक दिन बाद ही बांग्लादेश की एक अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की गिरफ्तारी के लिए जारी वारंट स्थगित कर दिया है। सरकारी अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि वे अगले साल के अंत तक चुनाव कराना चाहेंगे और सेना के एक प्रवक्ता के हवाले से कहा गया है कि शेख हसीना और बेगम खालीदा जिया दोनों बेगमों ने पिछले पंद्रह सालों में देश को बर्बाद कर दिया है। इसलिए किसी भी सूरत में इन दोनों को बांग्लादेश की सत्ता में दोबारा लौटने नहीं देंगे।

बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान के चमत्कारी व्यक्तित्व की जिनको याद हो वे आज के बांग्लादेश को देखकर उसी तरह निराश होंगे जिस तरह पाकिस्तान बनने के बाद खुद जिन्ना को बेहद निराशा हुई थी। भाषा और जनतंत्र के मुद्दे पर पाकिस्तान से अलग हुआ देश बांग्ला देश कट्टरपंथियों की शरणस्थली बन गया है। जिस तरह सैनिक जनरलों के बूटों के तले पाकिस्तान की अवाम के हुकूक को रौंदा जा रहा है उसी तरह अब बांग्लादेश की सेना नहीं चाहती कि देश में दोबारा लोकतांत्रिक शासन लौटे। जिस तरह धर्म एक होने के बावजूद भारत से गये मुसलामानों को आज भी वहां 'मुहाजिर` कहा जाता है। ठीक उसी तरह एक धर्म होने के बाद भी बांग्लादेश में बिहार से गये मुसलमानों का 'बिहारी मुसलमान` कहकर उपहास उड़ाया जाता है, उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक भी नहीं माना जाता। सैनिक शासन की वापसी के बाद बांग्लादेश की स्थिति कैसी होगी और उस पर भारत की क्या प्रतिक्रिया होगी, इसके बारे में अभी कुछ भी कहना शायद जल्दबाजी होगी। हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दोनों पूर्व प्रधानमंत्रियों को थोड़ी राहत मिली है। लेकिन यह अंतराष्ट्रीय बदाब के कारण है, इसे हमें नहीं भूलना चाहिए।

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