अनुवाद कवि स्वयं
- जीवकांत
सूखे पत्ते ढेर में
आप चुनकर आए ऊपर आ गए
जमा करने लगे हथियार
अपने से फुर्सत नहीं पा रहे आप
नीचे आप नहीं उतर रहे कि उन लोगों से पूछें
जो खेतों के बीच
फूस के झोपड़ों के बीच छूट गए हैं
आपके क्षेत्र में मतदाता हैं
वे फूलों का हार नहीं बना रहे
वे इकट्ठे कर रहे हथियार
बम बना-बनाकर जमा करते हैं
सड़कों में फिट कर रखे विस्फोटक
प्रजातंत्र में एक लकीर खिंच गई
सत्तासीन एक तरफ/दूसरी ओर दीन-दुखियार
दोनों तरफ होड़ हथियारों की
बांटना था अन्न/पानी बांटना था
एक अवसर अभी बचा है
जाओ तो वहां दिन में जाओ
हथियार पीछे छोड़ते जाओ/पुल बनाकर जाओ
सड़क बनाकर जाओ
अस्पताल का उद्घाटन करने जाओ
जा रहे हो तो एक पुस्तकालय ले जाओ
खेती की मशीनें लेकर जाओ
कुएं लेकर जाओ/गन्ने पेरने की मिल बैठाने जाओ
साथ में दस शिक्षक लेकर जाओ
सभी प्रकार की मशीनें चलाने के लिए
एक वर्क शॉप बिठाने जाओ
एक अवसर अंतिम है
वे अंतिम सड़क पर फिट करने वाले हैं विस्फोटक
वे प्रत्येक आगंतुक के लिए तैयार रखते हैं
एक जिन्दा कारतूस
वे प्रजातंत्र को आग में चढ़ाएंगे
आग के लिए जमा कर रखा है वहां
सूखे पत्तों का ढेर
नकली
गांवों के लिए कोई बजट नहीं
खेत में उगते अनाज की कीमत नहीं
बड़े कारखानों में बनता गुणवत् माल
मनोहारी पैकिंग
ललचानेवाले विज्ञापन गांव के लिए नहीं
नकली सामान बना रहे लोग
अंधेरे गोदामों में
नकली स्टाम्प पेपर/नकली नोट
नकली दवाएं
नकली पैकिंग और नकली 'रैपर`
ठेलते रहते देहातों में
देहात का पब्लिक स्कूल
अथवा सरकारी पाठशाला सारे नकली
गेस पेपर नकली छपता है
डाक्टर वहां झोला छाप
जहर मिलावटी
देहात की ओर पलटकर नहीं देखता
कपड़ा असली
सिमेंट असली
अग्नि-प्रलय
भादों की बरखा
हर जगह समान दिखती है भिंगोती हुई
आसिन में खेतों में फट आती हैं दरारें
धान के पौधे मुरझाते हैं
मुदा जलधर ताल और झील
अथवा गड्ढे, चहबच्चे
इकट्ठा रख लेते हैं, पानी
पहले साझा होते थे पोखरे और कुएं
आज की लंबी-चौड़ी झीलें
खुदसर कुओं में तब्दील कर ली गई हैं
किधर जा रहा प्रजातंत्र
भ्रष्टाचार और देश-सेवा में किस जगह
कितना अंतर छूट रहा है
बोलो, गिनने के लिए कितना पैसा चाहिए
चोरी-चोरी रखने के लिए चाहिए कितना बड़ा गोदाम
पैसे को फूस के ढेर की तरह उठाते हो
यह आदमी के खिलाफ है
यह है गंगा की धारा और पीपल वृक्ष के विरूद्ध
संगीन कार्रवाई
पीपल वृक्ष बोलता है उसे कौन सुनता है
एशिया और अफ्रीका में मारी गइंर्-गिद्धों की प्रजातियां
वह आंख किसे है
कौन खोलेगा मुंह और विरोध करेगा
रूपयों के ढेर पर बैठा आदमी
हो जाता है अंधा
कहते हैं उल्लू को नहीं दीखता दिन में
नया उल्लू बढ़ा है तादाद में
उसे रात में भी नहीं सूझता
मारा जाएगा जीवन का बीज
प्राण धारण के विरूद्ध है यह विकास
सारा वाणिज्य
चाट-पोंछकर रख देगा
उत्तरी ध्रुव से लगाकर दक्षिणी धु्रव को
आग पकड़ती है जंगल को
वनस्पति के सूखे पत्ते धू-धूकर जलते हैं
साथ में हरे पत्ते लपट पकड़ लेते हैं
घास राख में बदलती है
बड़े पेड़ भी धुंधुआते हैं सात दिनों तक
आखिर यह जमाखोरी
मृत्यु के सौदे में कल्पित हो गई
विकास के तेज वाहन ने पकड़ ली है गति
कौन रोकेगा, बोलो?
इस अग्नि-प्रलय को कौन दबाएगा?
भोगेगा, भोगेगा, निश्चय ही भोगेगा....
शहर में
शहर में उड़ती है गर्द-गुबार
साफ-साफ दिखता नहीं
कौन है जो तेजी से आ रहा है
सड़कें बिकने लगती हैं
खरीदार आते ही आधा शहर बिक जाता है
एक रात में
जो देखता है
देखता-ही-देखता रह जाता है
पुराने हिस्से शहर के
भूतनाथ के डेरे में तब्दील होते हैं
दिन में भी डरावने
जो कुछ करने का माद्दा रखता है
कर जाता है बहुत सारा महज साल भर में
उठा देता है गगनचुंबी निर्माण
बरसने लगती है लक्ष्मी/तो अम्बार लग जाता है
वह कब्जे में लेना चाहता है धरती
देशों और महादेशों में फैला देता है कारोबार
उसका विज्ञापन टी.वी. की ट्यूब पर
पानी की लहरों जैसा तैरता है
लहरें आती हैं जाती हैं/अधिकतर झिलमिलाती हैं
शहर रोज बिकता है
बेचकर जो निकल गया
वह आसिन के बादल की तरह
खो जाता है शून्य में
शहर किसी की बपौती संपत्ति नहीं है
दिन-रात खरीद-बिक्री
घाटा-मुनाफा/मिनट-मिनट में तेजी-मंदी
पुराने लोक-व्यवहार बदल जाते हैं
पुराने अखबार रद्दी के भाव बिकते हैं
किसी के आगे कोई पिछली बात
उठाना बकवास है
बेकार हो जाते हैं/पुराने संस्कार
कपड़े पहनने का पुराना तरीका हास्यास्पद
पुराने विधि-व्यवहार/पुराने लोकाचार
संस्कृति और धार्मिक कर्मकाण्ड
बासी और तेबासी होकर फेंके जा रहे
मैथिली में भी कविता का ऑनलाइन क देबे त बहुत निक लागत ...............
ReplyDeleteजीवकांत जीक अप्रकाशित मैथिली कविता 'विदेह' ई पत्रिका जे http://www.videha.co.in/ पर मासक 1 आ'15 तिथिकेँ ई-प्रकाशित होइत अछि, केर हेतु ggajendra@videha.co.in वा ggajendra@yahoo.co.in पर पठाऊ।
ReplyDeleteगजेन्द्र ठाकुर