December 17, 2007

फौजी शासन के निशाने पर न्यायपालिका और मीडिया



  • पंकज

पाकिस्तान का इतिहास गवाह है कि १९५८ में जनरल अयूब खान से शुरू हुआ फौजी हुक्मरानों का शासन वहां चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में प्रभावित करने में कामयाब होता रहा है। पाकिस्तान का लोकतंत्र फौजी शासकों और के बूटों तले लहुलुहान होते रहने के लिए शायद इस हद तक अभिशप्त है।



पिछले कई हफ्तों से पाकिस्तान में वकील हड़ताल पर हैं और वे मुख्य न्यायाधीश के निलंबन को न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला मानकर अदालती कार्रवाइयों का विरोध कर रहे हैं। इन विरोध प्रदर्शनों के बीच जस्टिस राना भगवानदास को पाकिस्तान का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाया गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया इस मुद्दे को बड़ी-बड़ी सुर्खियों में छाप रहा है कि जस्टिस भगवानदास पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय की कुर्सी पर बैठने वाले पहले हिन्दू न्यायाधीश हैं। जनरल मुर्शरफ द्वारा राना भगवानदास को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने के बाद ताजा हालत यह है कि पुलिसिया कहर में कोई कमी नहीं आई है और पुलिस ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति रफीक तरार को भी नजरबंद कर दिया है और उन्हें कहीं आने-जाने की इजाजत नहीं है। इसके साथ ही इस्लामी गठबंधन एम.एम.ए. के नेता काजी हुर्सन अहमद को भी गिरफ्तार कर लिया गया है।


निलंबित न्यायाधीश इफित्खार चौधरी के समर्थन में देशव्यापी प्रदर्शनों के कारण पुलिस ने विभिन्न शहरों में आंदोलनकारियों के खिलाफ बल प्रयोग के साथ-साथ आंसू गैस का भी इस्तेमाल किया है। पुलिस ने मीडिया तक को नहीं बख्शा और खबरों की कवरेज के लिए वहां गये पत्रकरों की जमकर पिटाई की गई। इतना ही नहीं वहां के प्रतिष्ठित अखबार 'डॉन` को जो सरकारी विज्ञापन दिये जा रहे थे, वह भी तत्काल प्रभाव से रोक दिए गए हैं। पाकिस्तान में प्रेस की आजादी के लिए काम करने वाली संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बोडर्स` ने मीडिया पर अंकुश लगाने के लिए पाकिस्तान सरकार की कड़ी निंदा की है। संस्था की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि हमंे डर है कि इस साल राष्ट्रपति चुनाव के दौरान मीडिया की स्वतंत्रता पर सरकार की ओर से हमला हो सकता है। प्रेस स्वतंत्र रूप से वहां काम कर पाएगा या नहीं यह कह पाना फिलहाल मुश्किल ही दिख रहा है। गौरतलब है कि पिछले १२ मार्च को पाकिस्तान के मीडिया नियामक प्राधिकरण ने दो चैनलों 'आज` और 'जियो टी.वी` के प्रसारणों को कई घंटे तक बाधित रखा। वहां के सूबा पंजाब के पुलिस ने जियो टी.वी के कार्यालय पर हमला किया और उसके कार्यालय को काफी नुकसान पहुंचाया गया। यह हमला उस समय किया गया जब ये चैनल वकीलों के विरोध प्रदर्शनों की फुटेज दिखा रहे थे।


राष्ट्रपति जनरल परवेज मुर्शरफ के लिए यह नई परेशानी इस रूप में आई है कि बहुत से पाकिस्तानी बर्खास्त न्यायाधीश इफ्ित़खार चौधरी के निलंबन को सैनिक शासन की तानाशाही का नतीजा बता रहे हैं और पाकिस्तान की जनता को यह यकीन दिलाना मुश्किल हो रहा है कि उन पर लगे आरोपों में कोई सच्चाई थी। विरोध प्रदर्शनों की व्यापकता का अहम कारण यह भी है कि आम जनता फौजी हुक्मरानों से आजिज आ चुकी है। वहां के सैनिक आम जनता को कुछ नहीं समझते हैं। वे सामान्य मानवाधिकारों तक की परवाह नहीं करते। वकीलों और पुलिस के भिड़ंत में निहत्थे वकीलों के काले कोट खून से रंग जाने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि तो खराब हुई ही, इस घटनाक्रम से यह भी संकेत मिला कि फौजी हुक्काम की इस कारगुजारी से वहां इस्लामी चरमपंथी गुट मजबूती से उभर रहा है। पाकिस्तान की छवि को तब और भी जबर्दस्त झटका लगा जब वहां की सरकारी विमान सेवा पी.आई.ए. की अनेक उड़ानों पर सुरक्षा कारणों से यूरोपीयी संघ ने अपने-अपने देश में रोक लगा दी।


पाकिस्तान का इतिहास गवाह है कि १९५८ में जनरल अयूब खान से शुरू हुआ फौजी हुक्मरानों का शासन वहां चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में प्रभावित करने में कामयाब होता रहा है। पाकिस्तान का लोकतंत्र फौजी शासकों और आतंकियों के बूटों तले लहुलुहान होते रहने के लिए शायद इस हद तक अभिशप्त है कि वह मीडिया, न्यायपालिका और विधायिका किसी को भी बहुरमती से बचा नहीं पा रहा है। पाकिस्तान की आम जनता इस आंदोलन के बहाने जैसी प्रतिबद्धता दिखा रही है वह शायद जनरल मुशर्रफ और पाकिस्तान के फौज दोनों के लिए निर्णायक होगी।

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