December 14, 2007

सच्चर रिपोर्ट की खामियां



  • शरीफ कुरैशी


सच्चर समिति ने मुसलमानों को एक ईकाई माना है। इस कारण कई स्थानों पर भयंकर भूलें हुई हैं। मुसलमानों को एक ईकाई मानकर किए जा रहे इस आकलन में इस तरह की भूलें अवश्यंभावी ही थीं। समिति को मुसलमानों का अध्ययन भी हिन्दुओं की तरह वर्गों में बांटकर करना चाहिए था।



केंद्रीय सरकार ने मुसलमानों के सामाजिक शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति की जानकारी लेने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था जिसके अध्यक्ष, दिल्ली उच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज श्री राजेन्द्र सिंह 'सच्चर` बनाये गये थे। कई अन्य क्षेत्रों के विद्वान इसके सदस्य थे। कई कठिनाइयों के उपरान्त समिति ने १७ नवम्बर २००६ को अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप दी है।

समिति ने हिन्दुओं को चार खानों में बांटकर अध्ययन किया है। (१) सामान्य वर्ग (२) पिछड़ा वर्ग (३) अनुसूचित जाति (४) अनुसूचित जनजाति। परन्तु, उसने मुसलमानों को मात्र एक ईकाई माना है। इस कारण कई स्थानों पर भयंकर भूलें हुई हैं, मुसलमानों को एक ईकाई मान कर किए जा रहे इस आकलन में इस तरह की भूलें आवश्यंभावी ही थीं। मसलन, रिर्पोट में बताया गया है कि मुसलमानों के मकान बैकवर्ड हिन्दुओं की तरह हैं परन्तु अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से अच्छे हैं। (पेज-१५०) इसी प्रकार शिक्षा की स्थिति में बताया गया है कि मुसलमान पिछड़े हिन्दुओं के बराबर हंै, परन्तु अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से अच्छे हैं। (पेज-२४२)
उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि सच्चर समिति ने पिछड़े एवं अति पिछड़े मुसलमानों का सर्वे ही नहीं किया। उसे पिछड़े, अतिपिछडे एवं दलित मुसलमानों के बारे में भी अलग से सर्वे रिपोर्ट देनी चाहिये थी। इससे मुसलमानों कि असली स्थिति उभर कर सामने आती।
मुसलमानों के अति पिछड़ा (दलित वर्ग) जैसे-मेहतर, धोबी, मोची, बक्खो, नट, लालबेगी, नालबन्द, साई, नाई, डफाली, भांट, पवड़ियां, भटियारा, मीरासन, चूड़ीहारा, जुलाहा, धूनिया, कुन्जड़ा, कसाई, कलन्दर, मदारी, भिश्ती इत्यादि की स्थिति हिन्दू दलितों से भी बदतर है। परन्तु सच्चर समिति ने इन लोगों का न तो अलग से सर्वे किया और न ही इनका कोई डाटा पेश किया, जबकि कुल मुसलमानों की आधी आबादी इन्ही जातियों की है।
इन जातियों में ९५ प्रतिशत लोगों की सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति इतनी बदतर है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। सरकारी एवं गैरसरकारी नौकरियों में इनकी उपस्थिति लगभग शून्य है। बी.ए और एम.ए. पास लड़के उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, लड़कियों में तो शिक्षा है ही नहीं। सर्वे तो इन लोगों का होना चाहिए था। यह सरकार के लिए योजना बनाने में सहायक सिद्ध होता एवं योजना के अनूकुल गरीबों का उत्थान होता। आर्थिक मैदान में अति पिछड़े मुसलमानों की स्थिति पशुओं से भी बदतर है। वे अभी तक अपना जातिगत पेशा करने के लिए मजबूर हैं। जैसे-मेहतर, हलालखोर, लालबेगी मेहतर का काम करते हैं। मोची-जूता एवं चमड़े का कारोबार करता है। धोबी-कपड़ा धोता है, नट, मदारी, सपेरा इत्यादि सांप, भालू, बन्दर नचाते हैंं। नालबन्द-जानवरों को नाल ठोकता है, नाई-बाल काटता है, डफली-बाजा बजाता है, साई, भाटु, पवड़िया इत्यादि का पेशा भीख मांगना है, चूड़ीहारा-चूड़ी बेचता है, जुलाहा-कपड़ा बुनता है, कसाई-मांस बेचता है, कुंजरा-सब्जी बेचता है एवं धुनिया-रुई धुनता है एवं रजाई भरता है। इन लोगों की सामाजिक आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति हिन्दू दलितों एवं आदिवासियों से भी बदतर है। इन की कुल जनसंख्या मुसलमानों के आधी आबादी से भी अधिक है। परन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि मुसलमानों की इतनी बड़ी आबादी का सच्चर समिति वालों ने अलग से सर्वे नहीं किया।

सच्चर समिति ने स्वयं स्वीकार किया है कि अति पिछड़े वर्ग के मुसलमानों की स्थिति दयनीय है, इसे अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए "Arzals are the worst off and need to be handled separately. It would be most appropriate, if they were absorbed in the scheduled cast list" (Sachar Commitee Page-195.)
सच्चर समिति ने अपनी रिपोर्ट में आई.ए.एस, आई.पी.एस. और आई.एफ.एस. में तथा केन्द्रीय एवं प्रान्तीय सेवाओं में मुसलमानों का प्रतिशत दिखलाया, परन्तु यह नहीं बताया की इसमें पिछड़े एवं अत्यन्त पिछड़े लोगों का क्या अनुपात है, उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में भागीदारी मिल रही है या नहीं। आज देश को यह जानने की भी जरूरत है कि उच्च एवं उच्चतम न्यायलय में क्रिकेट, फुटबॉल एवं फिल्म जगत में कितने मुसलमान थे और हैं; और इन में कितने पिछड़े एवं अत्यन्त पिछड़ी जाति के मुसलमान थे एवं हैं। प्रान्तों के विधानसभाओं में एवं विधान परिषदों में एवं लोकसभा-राज्यसभा में कितने मुसलमान हैं। उद्योगपति कितने हैं और इनमें पिछड़ी एवं अत्यन्त पिछड़ी जाति के कितने मुसलमान हैं ?

मुसलमानों की मात्र पांच, छ: जातियां उच्च वर्ग में आती हैं, बाकी पिछड़ी एवं अत्यन्त पिछड़ी जातियां ५२ हैं। आबादी का अनुपात उच्च वर्ग का २० प्रतिशत एवं पिछड़ा वर्ग का ८० प्रतिशत है। इसमें पिछड़े एवं अत्यन्त पिछड़े वर्ग के लोगों में ९५ प्रतिशत लोग सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से पिछड़े हैं।
यदि सरकार पिछड़े मुसलमानों का विकास चाहती है तो अवश्यक है कि हिन्दुओं की तरह ही मुसलमानों को भी चार हिस्सों में बांट कर सर्वे कराया जाये तभी मुसलमानों की सही तस्वीर उभर कर सामने आयेगी।
पूर्व में भी कई कमिटियों ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सुपूर्द की है। उन रिपोर्टों में भी मुसलमानों की दयनीय स्थिति को बतलाया गया है परन्तु केन्द्रीय सरकार ने कभी भी उनके सुझावों को लागू नहीं किया। इस कारण सच्चर कमिटी की रिपोर्ट लागू ही होगी, इसकी आशा नजर नहीं आती। फिर भी यदि सरकार चाहती है कि मुसलमानों की भी सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हो तो निम्नलिखित सुझावों पर भी अमल करना होगा :
  • सच्चर समिति रिपोर्ट में बताया गया है कि मुसलामन अपने आप को असुरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन असुरक्षा कैसे दूर हो यह नहीं बताया गया है। असुरक्षा दूर करने के लिए देश से साम्प्रदायिकता को समाप्त करना होगा। पिछले साम्प्रदायिक दंगों में मारे गये लोगों के परिजनों को क्षतिपूर्ति एवं पुनर्वास की व्यवस्था करायी जाये तथा साम्प्रदायिक दंगा भड़काने वाले लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये तथा पाठ्यक्रमों से सांप्रदायिकता को हटाया जाए। मुसलमानों के विकास में साम्प्रदायिक दंगा सबसे बड़ा रोड़ा है।
  • रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों तक सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता है। उन्हें लाभ पहुंचाने के लिए आवश्यक है कि केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकार, हर कल्याणकारी योजना का कुछ प्रतिशत प्रत्येक जिला के मुसलामनों के लिए निश्चित करे, लक्ष्य का निर्धारण किया जाये एवं आवंटन के विचलन को कड़ाई से रोका जाये। प्रोग्राम के कार्यान्वयन के लिए राज्य से लेकर प्रखण्ड स्तर तक देख रेख के लिए कमिटी का गठन किया जाये एवं प्रखण्ड से लेकर राज्यस्तर तक अल्पसंख्यक पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाये जो कार्यों को कार्यान्वित करा सकें।
  • रिपोर्ट के अनुसार पुलिस वाले अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार करते हैं। परन्तु इसे कैसे रोका जाए, रिपोर्ट में बताया नहीं गया है। पुलिस अत्याचार से बचाव के लिए हरिजन थाना की तरह मुस्लिम थाना प्रत्येक मुस्लिम बहुल्य क्षेत्र में स्थापित किया जाए, जिसके अधिकतर कर्मचारी एवं पदाधिकारी मुसलमान हों।
  • द मदरसा शिक्षा का आधुनिकीकरण किया जाये। यदि केन्द्रीय सरकार सारा व्यय देने को तैयार हो और वह शिक्षक नियुक्ति एवं कोर्स के चयन में हस्तक्षेप न करे, भवन निर्माण का खऱ्च दे तो मदरसा शिक्षा का भी आधुनिकीकरण किया जा सकता है।
  • मुस्लिम लड़कियां उच्च शिक्षा नहीं ग्रहण कर पाती हैं। इसका भी कारण नहीं बताया गया इसका कारण है कि प्रत्येक गांव में उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं है एवं असुरक्षा की भावना के कारण लड़कियों को बाहर भेज कर शिक्षा दिलाना संभव नहीं हो पाता।
  • सरकारी एवं अर्द्धसरकारी नौकरियों की नियुक्तियों में मुसलमानों के साथ भेद-भाव किया जाता है, परन्तु रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि इस भेद-भाव को कैसे दूर किया जाये। इस भेद-भाव को दूर करने के लिए केन्द्रीय एवं प्रांतीय सरकारों की नियुक्ति स्थानान्तरण एवं पदस्थापन और पदोन्नति की समितियों में एक मुस्लिम सदस्य का होना आवश्यक बनाया जाये। नियुक्ति में मुसलमानों की आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया जाये। बेरोजगार लड़कों को प्रौद्योगिक प्रशिक्षण एवं कोचिंग दिलाने का प्रबंध किया जाये, जिससे उनकी क्षमता का विकास हो सके।
  • मुसलमानों को बैंक ऋण दिलाने की सुविधा दी जाये। रिपोर्ट में यह भी नहीं बताया गया कि मुसलमान बैंक से ऋण लेने में क्यों पीछे हैं। सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि मुसलमानों के लिए सूद लेना या देना हराम है। इसलिए बैंक से बिना सूद का ऋण दिलाया जाये या लाभ का अंश निर्धारित किया जाए। शर्तें आसान बनायी जायें।
  • कई बार वोटरलिस्ट से मुसलमानों का नाम गायब रहता है। ऐसी गड़बड़ी करने वालांे को कड़ी से कड़ी सजा दिलायी जाए।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि नवोदय विद्यालय में भी मुसलमानों का दाखिला कम है परन्तु क्यों कम है। यह नहीं बताया गया है। नवोदय विद्यालय, केन्द्रीय विद्यालय तथा सी.बी.एस.सी और आई.सी.एस.ई. में उर्दू की पढ़ाई नहीं है।
  • रिपोर्ट में बताया गया है कि मुस्लिम बहुल्य क्षेत्रों को दलित या आदिवासी चुनाव क्षेत्र के रूप में रिजर्व कर दिया जाता है। परंतु इस रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि इसके अतिरिक्त मुस्लिम क्षेत्रों को तोड़ कर ऐसे बांट दिया जाता है कि इन क्षेत्रों से मुसलमानों का प्रभाव ही समाप्त हो जाये एवं कोई भी मुसलमान सीट नहीं जीत सके।
  • समिति ने अपनी रिपोर्ट में मौलाना आजाद फाउण्डेशन के कौरपस फण्ड को बढ़ाने की बात की है। परन्तु इसके कार्यों एवं उद्देश्यों का प्रचार-प्रसार नहीं होने के कारण, मुस्लिम छात्रों को इसकी जानकारी नहीं है। आवश्यक है कि प्रत्येक जिले में इसका ब्रांच खोला जाए एवं इसके उद्देश्यों का प्रचार हो।
  • अल्पसंख्यक वित्तिय निगम के कार्यकलापों को व्यापक बनाया जाए। प्रत्येक जिले में इसका ब्रांच खोला जाए, शर्तों को आसान बनाया जाए। आवदेन देने एवं प्रक्रिया पूरी करने में एक माह से अधिक का समय न लगे। प्रत्येक माह कितने लोगों को ऋण मिलना चाहिए, इसका लक्ष्य निर्धारित किया जाए।
  • डी वक्फ की जायदाद के लिए, इस्लामिक नियमों के विशेषज्ञों एवं कानूनविदों की समिति बनायी जाये। छंजपवदंस ूंुि क्मअमसवचउमदज ब्वतचवतंजपवदण् बनाया जाए। परन्तु मेरे विचार में वक्फ को गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की तरह बनाया जाना चाहिए, जिसमें अध्यक्ष तथा सदस्यों का मुसलमानों द्वारा चुनाव हो। और इस के द्वारा मुसलमानों के कल्याणकारी कार्य कराये जा सकें।
  • मुसलमानों के अति पिछड़ा वर्ग (जिन्हें १९५० से अनुसूचित जाति से हटा दिया गया था) को अनुसूचित जाति में पुन: शामिल किया जाए। जिससे हिन्दू दलित एवं मुस्लिम दलित में कानून की नजर में कोई फर्क न हो।
  • मुस्लिम बहुल्य क्षेत्रों को आरक्षण मुक्त किया जाये या मुस्लिम दलितों के लिए रिजर्व किया जाए।
  • विशेष अभियान चला कर मुसलमानों की पुलिस फौज एवं अन्य सरकारी विभागों में भर्ती की जाए।
  • अति पिछड़ा एवं पिछड़ा वर्ग के मुसलमानों को नामांकन के लिए कोचिंग एवं प्रशिक्षण का प्रबंध किया जाए।
  • अभियान चलाकर लघु उद्योग, मध्यम उद्योग तथा बड़े उद्योग लगाने में मुसलमानों को प्राथमिकता दी जाए। प्रत्येक जिले में उद्योगों की एक निर्धारित संख्या मुसलमानों के लिए आरक्षित की जाए। सिंगल विंडो सिस्टम प्रत्येक जिले में स्थापित किया जाए। इसके तहत एक माह के अन्दर सरकारी प्रक्रियायें पूरी कर जमीन एवं ऋण आदि उपलब्ध करा दिये जाएं।
  • अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को शीघ्रता से सरकारी मान्यता प्राप्त करायी जाये एवं उच्च शिक्षण संस्थान खोलने में सरकार हर प्रकार की मदद करे।
  • सरकारी जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मुसलमानों को भी आवश्यक रूप से पहुंचाया जाए और भेदभाव करने वाले को कड़ी सजा दी जाए। प्रधानमंत्री राज्यस्तरीय १५-सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति को मजबूत बनाया जाए। अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए आवंटन अलग किया जाए, कार्यान्वयन के लिए प्रान्त से लेकर प्रखंड स्तर तक समिति बनायी जाए एवं प्रखंड से लेकर प्रांत तक के लिए सुयोग्य कर्मचारी एवं पदाधिकारी नियुक्त किए जाएं।
  • मुसलमानों को निर्यात ;म्गचवतजद्ध की पूरी जानकारी देकर उन्हें निर्यातक बनाया जाए।
  • केन्द्रीय सरकार ने कल्याणकारी फण्ड १५ प्रतिशत भाग मुसलमानों के कल्याण के लिए अलग करने की घोषणा की है। सरकार को चाहिए कि वह स्पष्ट करे कि ये आवंटन किस प्रकार और किन-किन अवसरों पर व्यय होगा।
  • केन्द्रीय सरकार के समाज कल्याण विभाग की पुनर्वास योजना का कोई लाभ मुसलमानों को नहीं मिल पाता है। मुसलमानों वैसे पेशा करने वाली जातियों को, जो अस्वच्छ धंधे में लगे हुए हैं, चिन्हित कर सरकार विशेष अभियान चलाकर उनके लिए स्वच्छ रोजगार एवं पुनर्वास की व्यवस्था करे, उनके बच्चों के शिक्षा का पूरा प्रबन्ध करे, ऐसे क्षेत्रों में ऑगनबाड़ी केन्द्र, इन्दिरा आवास स्थापित किया जाए। अच्छा हो कि इनमें शिक्षित लड़को को सरकारी नौकरी में बहाल किया जाए। जिससे इन अति पिछड़े मुसलमानों के जीवन में भी नया सवेरा आ सके।
  • मुसलमानों का ये अतिपिछड़ा वर्ग पूर्णत: दबा कुचला एवं शोषित है। अशिक्षा, गरीबी एवं कुपोषण के कारण इनकी स्थिति दयनीय है। मुसलमानों की इस आधी से अधिक आबादी को पिछड़ा छोड़ कर मुसलमानों की उन्नति या देश की उन्नति की बात नहीं सोची जा सकती है। इन्हें पिछड़ा छोड़ कर हम २०२० का विजन नहीं देख सकते। सरकार को प्रयास करना होगा कि सरकारी योजनाओं का लाभ पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंच सके। तभी इस तरह की समितियों की कोई सार्थकता होगी।


शरीफ कुरैशी राज्यस्तरीय १५ सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति बिहार के कार्यकारी अध्यक्ष हैं।

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