December 24, 2007

वैश्वीकरण के साथ खास तरह के संवाद की जरूरत



  • मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी से मृत्युंजय प्रभाकर की बातचीत


मृत्युंजय प्रभाकर : हमारे देश में बुर्जुआ वर्ग की पॉलिसी रही है कि किसी अप्रिय घटना को सीधे-सीधे साजिश करार दिया जाय। इसे कांसपेरेसी थ्योरी कहा जाता है। आपको नहीं लगता कि नंदीग्राम के मामले में आपकी पार्टी यही रवैया अपना रही है?

सीताराम येचुरी : कोई कांसपेरेसी थ्योरी नहीं है। यह एक सीधा राजनीतिक टकराव है। लोगों के बीच शंका थी कि उनकी जमीन ली जा सकती है और वह जमीन देना नहीं चाहते थे। इसके पीछे दुष्प्रचार की बड़ी भूमिका है। अफवाह उड़ाई गई कि इस परियोजना के दायरे में ३०० गांव आते हैं। जबकि केन्द्र ने जो प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा था उसमें मात्र पांच मौजों (एक मौज में औसत तीन से चार गांव आते हैं) में इस केमिकल हब को लगाने की बात है। अफवाह को दूर करने के लिए हल्दिया डेवलपमेंट ऑथरिटी ने नोटिस जारी किया कि इस परियोजना के दायरे में मात्र पांच मौजें ही आती हैं। इस नोटिस को ही इस प्रकार दुष्प्रचारित किया गया कि सरकार जमीन छीनने का नोटिस जारी कर रही है। यहीं से झड़पों की शुरूआत हुई और हमारे कार्यकर्त्ताओं को उस इलाके से खदेड़ा जाने लगा। सारे रास्ते काट डाले गए। प्रशासन तक को इलाके में घुसने से रोका गया।
परंतु मामला सिर्फ नंदीग्राम का नहीं है। पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ सालों से एक खास तरह का राजनीतिक कल्चर पैदा करने की कोशिश चल रही है। नंदीग्राम इसकी एक कड़ी मात्र है। केसपुर, बांसपेटा इसके पूर्ववर्ती उदाहरण हैं । दरअसल एक खास तरह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले लोग आतंक के माध्यम से अपना अस्तित्व बनाने की कोशिश कर रहे हैं। केसपुर में पहले ऐसा हो चुका है। केसपुर की घटना की रिपोर्ट में यह साफ था कि वहां पी.डब्लू.जी के लोगों को तृणमूल के लोग लेकर आए थे। और यही नंदीग्राम में हुआ। दरअसल सिंगुर में भी यह लोग ऐसा ही कुछ करना चाहते थे पर हम केसपुर के अनुभव के बाद सचेत थे। इसीलिए वहां दफा ४४ लगा दिया था। नंदीग्राम में हम ऐसा नहीं कर पाए क्योंकि नंदीग्राम के लिए समुद्र का रास्ता खुला था और इस प्रकार के घुसपैठ को रोकने के लिए जितनी पेट्रोलिंग की जरूरत थी वह संभव नहीं थी।

दूसरी बात यह कि फरवरी से १४ मार्च के बीच वाम मोर्चा सरकार ने शांति स्थापना हेतु २० सर्वदलीय बैठकें बुलाईं थी। दूसरी वामपंथी पार्टियां भी इसमें शामिल थीं। इनमें अन्तिम १० बैठकों का तृणमूल एवं एस.यू.सी.आई. ने बहिष्कार किया था इससे साफ जाहिर होता है कि तृणमूल एवं एस.यू.सी.आई. शांति स्थापना हेतु प्रयास में सहायक नहीं थे।

उधर कुल २५०० लोगों को उस इलाके से खदेड़ दिया गया था। हमारे १००० लोग रिलीफ कैंप में रहने को मजबूर थे। उन्हें वापस लौटने नहीं दिया जा रहा था। सबके काम रूके पड़े थे। बच्चे परीक्षा नहीं दे पा रहे थे। सवाल था कि आखिर कब तक इन्तजार किया जाए। निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं करने का आरोप लगा रही सी.पी.आई के विधायक विधानसभा में जोर-शोर से आवाज उठा रहे थे कि आखिर सरकार कब तक चुप बैठी रहेगी।
१४ मार्च को पुलिस जाएगी यह तय किया गया था और इसकी सूचना सबको थी। राज्य सरकार की ओर से पुलिस को निर्देश था कि किसी भी सूरत में गोलीबारी न की जाए। जो लोग पुलिस और सरकार पर तैयारी के साथ हमले का आरोप लगा रहे हैं मेरे ख्याल से अगर किसी की तैयारी थी तो उनकी। जिन्होंने महिलाओं और बच्चों को आगे कर पुलिस पर हमला करने का काम किया। पुलिस ने पहले भीड़ को हटाने के लिए आंसु गैस व लाठीचार्ज का सहारा लिया। तभी उपद्रवियों की ओर से आई एक गोली पुलिस वाले को लगी। पुलिस ने जवाबी कारवाई की जिसमें ८ लोगों की दुर्भाग्यवश मौत हुई। ६ बाकी लोगों की मौत कैसे हुई यह जांच का विषय है। पर इन तमाम चीजों के बीच हम यह भूल जाते हैं कि कुल २० पुलिसवाले भी इस घटना में घायल हुए हैं। और उनमें से दो की हालत नाजुक है।


मृत्युंजय प्रभाकर : आपके खयाल से यह बाकी के ६ लोग किनकी गोलियों के शिकार हुए? विपक्ष का आरोप है कि गोलियां सी.पी.एम. के लोगों द्वारा चलाई गई थीं।

सीताराम येचुरी : यही तो पता लगाना है। हम चाहते थे कि जूडिशियल इन्क्वायरी हो पर हाई कोर्ट ने खुद ही सीबीआई जांच के आदेश दे दिए। यह अपने आप में अनोखा उदाहरण है क्योंकि अभी तक ऐसा नहीं हुआ। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी चल रही है कि हाई कोर्ट सीबीआई जांच के आदेश खुद दे सकता है या नहीं।

जहां तक पार्टी की बात है हम पूरी तरह शांति चाहते थे इसीलिए पुलिस को दो महीने तक किसी भी प्रकार की कारवाई से दूर रखा। २०-२० बैठकें बुलाइंर्। पर अगर आप प्रशासन को काम ही नहीं करने दोगे तो यह कैसे चलेगा। आप बताओ कि कौन सा राज्य इस स्थिति को स्वीकार कर लेता।


मृत्युंजय प्रभाकर : आपकी पार्टी बंगाल की सबसे बड़ी पार्टी है और नंदीग्राम का इलाका भी आपके होल्ड का रहा है। फिर जनता के मिजाज को भांपने में नाकाम क्यों रहे? आप कह रहे हैं कि आपके २५०० लोगों को उस इलाके से निकाल दिया गया था, इससे साफ जाहिर होता है कि माहौल आपके खिलाफ था।

सीताराम येचुरी : देखना यह पड़ेगा कि उन्हें निकाला कैसे गया। आतंक के जरिए। नंदीग्राम कोई बड़ा शहर तो है नहीं, ना ही वहां की आबादी लाखों में है कि वहां से अगर हमारे २५०० लोगों को निकाल दिया गया तो मान लें कि बहुमत जनता हमारे खिलाफ थी। हमारे लोगों को सीधे-सीधे डरा-धमकाकर वहां से निकाला गया।

मैं फिर केसपुर को उदाहरण के तौर पर ले रहा हूं। वहां से भी हमारे ३००० लोगों को भगा दिया गया था। उन्हें भी कई महीने तक कैम्प में रहना पड़ा था। आप पूछेंगे यह कैसे संभव होता है। यह इसीलिए संभव होता है कि यह लोग बाकी जगहों से लोगों को मोबलाइज करते हैं। ऐसी घटनाओं में अब तक हमारे ३५० साथियों की जान जा चुकी है।


मृत्युंजय प्रभाकर : वैश्वीकरण एक यथार्थ है और इसके साथ खास तरह के इंगेजमेंट की बात आपकी पार्टी करती है। औद्योगीकरण का प्रयास भी उसी का हिस्सा है। दूसरी तरफ आप वैश्वीकरण का विरोध भी करते हैं। आपको नहीं लगता कि यह बहुत नाजुक संतुलन बनाने जैसा है?

सीताराम येचुरी : वैश्वीकरण एक यथार्थ है और इसके साथ खास तरह के डायलॉग (संवाद) की जरूरत है। यह अलग बात है। पर हम इस कारण से औद्योगीकरण चाहते हैं ऐसा नहीं है। बंगाल में पिछले पच्चीस सालों के शासन का जो हमारा अनुभव है वह हमें इस रास्ते पर ले जा रहा है। बंगाल में भूमि सुधार लागू करने के बाद हमने कृषि उत्पादकता को बढ़ाने पर जोर दिया। इसमें जितना सुधार संभव था हमने किया। अब इसमें ठहराव की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। हमें यहां से आगे बढ़ना है ताकि बढ़ी हुई कृषि उत्पादकता का लाभ हम उठा सकें। और इसके लिए औद्योगीकरण के अलावा कोई दूसरा रास्ता अगर हो तो आप ही सुझाएं।

बंगाल की वस्तुस्थिति को समझने के लिए सिंगुर का ही उदाहरण लें। कई लोगों को अभी तक यह भ्रम है कि सिंगुर में टाटा प्रोजेक्ट एक सेज परियोजना है, जबकि ऐसा नहीं है। खैर, इसके लिए ९९७ एकड़ जमीन ली गई। और कुल १६,००० लोगों को मुआवजा दिया गया। इसी से साफ जाहिर है कि खेती की जोत कितनी छोटी हो चुकी है। अब अगर आज यह हाल है तो आज से बीस साल बाद क्या होगा। अत: हमें लगता है कि औद्योगीकरण बंगाल की जरूरत है। और हम इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। आज आईटी सेक्टर में ग्रोथ के मामले में बंगाल पहले स्थान पर है।


मृत्युंजय प्रभाकर : आपने कहा कि कुल १६,००० लोगों को मुआवजा दिया गया पर इसका बड़ा हिस्सा उन भूमि मालिकों को गया जो सिंगुर में नहीं रहते। जबकि खेतों में काम करने वाले खेत मजदूरों को कुछ नहीं दिया गया।
सीताराम येचुरी : जहां तक खेत मजदूरों का सवाल है ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जिसके तहत उन्हें मुआवजा दिया जा सके। और इस तरह के कानून के लिए केन्द्र सरकार को पहल करने की जरूरत है। हमने अपनी तरफ से उन्हें विकल्प के रूप में काम देने की कोशिश की है। वैसे ९९७ एकड़ में से ९६७ एकड़ भूमि के लिए मुआवजा पाने वाले लोग वहीं के निवासी हैं। मात्र ३० एकड़ भूमि उनकी है जो वहां नहीं रहते।
मृत्युंजय प्रभाकर : आप बंगाल में औद्योगीकरण की जरूरत को स्वीकार करते हैं पर विडंबना है कि राज्य में हजारों की संख्या में उद्योग बंद पड़े हैं।

सीताराम येचुरी : जहां तक राज्य में औद्योगिक ईकाइयों के बंद पड़े होने का सवाल है यह इस कारण से है कि तकनीक बदल चुकी है। इसमें ज्यादातर जूट मिलें हैं। जिसकी जरूरत उद्योगों को आज नहीं रह गई है। यही हाल महाराष्ट्र में कॉटन मिलों का है।


मृत्युंजय प्रभाकर : पिछली सदी में हुए अंधाधुंध विकास के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान ने विकास की अवधारणा पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। आपको नहीं लगता कि सिंगुर में टाटा मोटर्स की जगह फूड प्रोसेसिंग ईकाइयां स्थानीय किसानों के लिए ज्यादा लाभप्रद होतीं?

सीताराम येचुरी : पर्यावरण को लेकर हम खुद काफी सचेत हैं। शायद आपको पता नहीं होगा कि इस देश में पर्यावरण मंत्रालय की शुरूआत सबसे पहले बंगाल में हमारी पार्टी ने ही की थी। दूसरे राज्य सरकारों व केन्द्र सरकार ने बाद में इसे अपनाया।

जहां तक पूंजी निवेश का प्रश्न है पूंजी राज्य सरकार के पास तो है नहीं कि वह मनपसंद उद्योग लगा सके। पूंजी पूंजीपतियों की है और अभी के समय में कोई भी राज्य सरकार या केन्द्र सरकार भी इस हालत में नहीं है कि वह पूजीपतियों को यह निर्देश दे सके कि पूंजी निवेश कहां करना है।

टाटा के सिंगुर प्रोजेक्ट के लिए कई राज्य सरकारें लाईन में थीं। इनमें कई उन्हीं पार्टियों द्वारा शासित हैं जो सिंगुर के मसले पर हमारा विरोध कर रहे हैं। फिर पहाड़ी राज्यों को ज्यादा कर रियायतें भी प्राप्त हैं। हालांकि उत्तर बंगाल भी पहाड़ी क्षेत्र है पर बंगाल को यह सारी रियायतें नहीं दी गई हैं।

दरअसल इस बात को हमने १९८५ में ही महसूस कर लिया था कि विपक्षी पार्टियां हमें विकास के सवाल पर घेरने के फिराक में हैं। इसीलिए वे नहीं चाहते कि बंगाल में वामपंथी शासन में विकास का काम हो। इसके लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। ममता का ही उदाहरण लीजिए। कल तक चिल्लाती थीं कि बंगाल में विकास का काम नहीं हो रहा है। आज जब विकास का काम चल रहा है तो यह भी उन्हें नहीं पच रहा है।


मृत्युंजय प्रभाकर : पिछले तीन दशक से बंगाल में शासन में होने के बावजूद आप कोई रोल मॉडल नहीं बन पाए। क्या यह आपकी विफलता नहीं है?

सीताराम येचूरी : हमें एक केन्द्रीकृत व्यवस्था के अन्दर अपना काम करना है। हमारे सामने स्कोप बहुत सीमित हैं । इसी व्यवस्था के भीतर हम एक राज्य में अलग कानून नहीं चला सकते। इसी कारण हम सीमित प्रभाव ही उत्पन्न कर पाने में सक्षम हैं।


मृत्युंजय प्रभाकर : नंदीग्राम के मुद्दे के बाद संस्कृतिकर्मियों और बुद्धिजीवियों के बीच आपकी पार्टी का प्रभाव घटा है। लोग खुलकर आपकी पार्टी के खिलाफ बोल रहे हैं।

सीताराम येचुरी : हम अपना पक्ष उनके सामने रख रहे हैं। कुछ लोग हमारी बात मान रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारा पक्ष उन्हें पहले पता नहीं था। पिछले तीन महीने से पीपुल्स डेमोक्रेसी में हम अपना पक्ष रख रहे हैं फिर भी अगर कोई कहता है कि हमारा पक्ष उन्हें नहीं पता था तो इसमें दोष किसका है?


मृत्युंजय प्रभाकर : विनिवेश के सवाल पर जिस प्रकार वामदलों का चेहरा लाल हो जाता है आरक्षण के सवाल पर नहीं होता। बंगाल की आपकी सरकारों में भी पिछड़ों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।

सीताराम येचुरी : आरक्षण के मसले पर संप्रग की बैठक में बात रखी गई है। जरूरत पड़ने पर दबाव भी बनाया जाएगा। आपको क्या लगता है कि १९९१ में नई आर्थिक नीति की शुरूआत करने वाले मनमोहन सिंह का हृदय परिवर्तन हो चुका है जो विनिवेश के मसले पर चुप बैठे हैं । यह सब हमारे दबाव का ही नतीजा है।
बंगाल में हम किसी को जाति के खांचे में रखते ही नहीं। आप कांति विश्वास को किस जाति में रखेंगे, आप ही बताइये।

मृत्युंजय प्रभाकर : पिछले पार्टी कांफ्रेस में आपकी पार्टी ने हिन्दी बेल्ट पर जोर देने की वकालत की थी। लगता है यह भी सल्किया प्लेनम की तरह सिर्फ शब्दों में ही रह गया। खुद आपके द्वारा संपादित पीपुल्स डेमोक्रेसी को ही उदाहरण के तौर पर लें तो अभी तक उसमें हिन्दी क्षेत्र को लेकर एक भी अच्छा आलेख तक देखने को नहीं मिला।

सीताराम येचुरी : जो लोग ऐसा समझ रहे हैं हमारा उनसे आग्रह है कि वे खुद आगे बढ़कर कुछ करें और उदाहरण प्रस्तुत करें। पार्टी के फैसला लेने मात्र से तो स्थितियां बदल नहीं जाएंगी। उसके लिए काम करना होगा और काम यहीं के लोगों को करना होगा। अच्छे आलेख भी यहीं से निकलेंगे।

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