- दिनकर कुमार
मेघालय के पश्चिम खासी पर्वतीय जिले में प्रस्तावित यूरेनियम के प्रस्तावित खनन का तीव्र विरोध विभिन्न जनसंगठन कर रहे हैं। खासी छात्र संघ (केएसयू) इस मुद्दे पर लगातार आंदोलन चला रहा है। मेघालय में आगामी फरवरी महीने में विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस के नेतृत्व वाली मेघालय लोकतांत्रिक गठबंधन (एमडीए) सरकार यूरेनियम के खनन के मुद्दे पर आम नागरिकों की नाराजगी का सामना कर रही है।
यूरेनियम खनन के सवाल पर जब एनडीए सरकार ने जनता से सलाह लेने की घोषणा की तो इस कदम को सरकार का छल बताते हुए केएसयू ने विरोध में 'जनता कर्फ्यू` और मेघालय बंद का आह्वान किया, जिससे राज्य का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। विरोध के बावजूद सरकार ने निर्धारित तारीख को जन सुनवाई की प्रक्रिया पूरी की। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पश्चिम खासी जिले में नोंग्बोह जिनरीम नामक स्थान पर लोगों से खनन के मुद्दे पर राय ली। केन्द्र सरकार की अधिसूचना के आधार पर पहली बार इस तरह की जन सुनवाई की गई और पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग भी की गई। ग्रामीणों ने खुलकर खनन के प्रस्ताव का विरोध किया। राज्य सरकार को उम्मीद थी कि लोग केएसयू के जबर्दस्त विरोध के बावजूद खनन परियोजना का समर्थन करेंगे। वैसी स्थिति में भारतीय यूनेरियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल) की करोड़ों रुपए की परियोजना शुरु करने के लिए हरी झंडी दिखाई जा सकती थी।
राज्य का प्रबुद्ध वर्ग सरकार की आलोचना इस बात के लिए कर रहा है कि उसने जनसाधारण के विरोध की उपेक्षा करते हुए जन सुनवाई के जरिए खनन का मार्ग प्रशस्त करने की कोशिश की। इस मुद्दे पर सरकार में शामिल पार्टियां डब्ल्यूएसपीडीपी और केडब्ल्यूएनएम ने स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिए यूरेनियम खनन को खतरनाक बताते हुए इस प्रस्ताव का शुरू से ही विरोध जताया था। दो अन्य पार्टियां यूडीपी और एमडीपी इस मुद्दे पर खामोश बनी रहीं। सरकार ने अब यूरेनियम खनन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए सर्वदलीय समिति का गठन किया है। इस बात की कम ही उम्मीद है कि विधानसभा चुनाव से पहले यह समिति अपनी रिपोर्ट पेश कर पाएगी। गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस की छवि इस मामले को लेकर धूमिल हुई है। जानकारों का मानना है कि अगर राज्य सरकार ने यूरेनियम खनन से जुड़ी भ्रांतियों को जनमानस से दूर करने के लिए पहले कोई जागरूकता अभियान चलाया होता और लोगों की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया होता तो इस तरह की जन सुनवाई का कोई औचित्य भी हो सकता था।
व्यवसायिक रूप से यूरेनियम खनन के प्रस्ताव को लेकर मेघालय में काफी पहले से आशंकाएं व्यक्त की जाती रही हैं। जिन ग्रामीण इलाकों में यूरेनियम खनन करने की बात की जा रही है, उन इलाकों के सहज-सरल निवासियों को खनन के प्रभावों के बारे में विज्ञान-सम्मत जानकारी नहीं है। वर्ष १९९१ में राजधानी शिलांग से १५० कि.मी. की दूरी पर स्थित डोमियालिपाट नामक गांव में यूसीआईएल ने प्रयोगात्मक रूप से यूरेनियम खनन का काम शुरु किया था। चौदह वर्षों के कठोर श्रम के बाद वर्ष २००५ में यूसीआईएल को यूरेनियम निकालने में सफलता मिल पाई। लेकिन इस लंबी अवधि में यूसीआईएल और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लोगों को खनन के पहलुओं से परिचित करवाने का कोई प्रयास नहीं किया।
यही वजह है कि लोगों के बीच असंतोष बढ़ता गया। जैसे ही यूसीआईएल ने ४.५० अरब रुपए की परियोजना शुरू करने की घोषणा की तो स्थानीय राजनेता, विद्वान एवं गैर सरकारी संगठन परियोजना के खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करने लगे और इस परियोजना को लागू होने से रोकने के लिए शक्तिशाली छात्र संगठन केएसयू ने राज्यव्यापी जन आंदोलन शुरु कर दिया। इसमें कोई शक नहीं कि यूरेनियम खनन से कई फायदे हो सकते हैं। यूरेनियम का इस्तेमाल रियेक्टर में आणविक इंर्धन और विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है। दूसरी तरफ असुरक्षित खनन का विध्वंसक प्रभाव मनुष्यों और पर्यावरण पर पड़ सकता है। खनन क्षेत्र से निकलने वाले रेडियोएक्टिव पदार्थ या विकिरण का लोगों की सेहत पर घातक प्रभाव पड़ सकता है, साथ ही इलाके का पर्यावरण तबाह हो सकता है। केएसयू के नेता और राज्य के प्रबुद्ध लोग इसी तरह की आशंका व्यक्त करते हैं। कुछ वर्ष पहले राज्य के एक क्षेत्र में असुरक्षित रूप से कोयला खनन करने का दुष्परिणाम सामने आ चुका है। उस अनुभव के चलते राज्य के लोग एकजुट होकर यूरेनियम खनन के प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं।
असुरक्षित खनन के खतरों के अलावा छात्र नेताओं को इस बात का भी अंदेशा है कि खनन कार्य शुरु होने पर बाहर से मजदूर काफी तादाद में आएंगे और जनजातीय जमीन को हड़प कर बसते चले जाएंगे। हालांकि यूसीआईएल आश्वस्त करता रहा है कि यूरेनियम खनन के लिए वह 'लीज` पर जमीन लेगा और बाहरी मजदूरों के लिए वर्क परिमिट की व्यवस्था करेगा, मगर छात्र नेता किसी भी कीमत पर यूरेनियम खनन की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं है।
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