October 4, 2007

पाकिस्तान में लोकतंत्र की सुगबुगाहट


परदेश




  • पंकज पराशर



पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफितखार चौधरी ने अपनी पुनर्बहाली के बाद मुशर्रफ हुकूमत के खिलाफ फैसला देना शुरु कर दिया है। २३ अगस्त, २००६ को भूतपूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और उनके भाई शहबाज शरीफ के वतन वापसी के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए उन्होंने सरकार को आदेश जारी किया कि वह नवाज शरीफ के वतन वापसी में रोड़ा न अटकाए। इस फैसले के तुरंत बाद नवाज शरीफ ने इसे तानाशाही की हार और लोकतंत्र की जीत बताते हुए जल्दी ही वतन वापस लौटने का इरादा जाहिर किया है। नवाज शरीफ की धुर विरोधी भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे लोकतंत्र की जीत बताया तथा मुशर्रफ सरकार की आलोचना की। गौरतलब है कि सरकार ने अपने पक्ष में जितने भी दस्तावेज जमा किए सबको सुप्रीम कोर्ट ने सिरे से खारिज करते हुए सरकार के पक्ष को बेहद कमजोर बताया। इससे नवाज शरीफ के उस आरोप को बल मिला कि मुशर्रफ हुकूमत ने उनके खिलाफ कोर्ट में फर्जी दस्तावेज जमा किए हैं।

लाल मस्जिद की घटना के बाद जिस तरह की समस्याओं से जनरल मुशर्रफ को दो-चार होना पड़ा, उस झटके से वह उबर नहीं पा रहे हैं। इस्लामी अतिवादी संगठनों ने कबायली इलाकों, सूबा सरहद और बजीरिस्तान के अलावा तकरीबन पूरे देश में अपनी कार्रवाई से सरकार नींद हराम कर रखी है। लाल मस्जिद की घटना से पहले सुप्रीम कोर्ट ने चीफ जस्टिस इफ्ितखार चौधरी की पुन: बहाली का आदेश सुनाया। इससे जहां एक तरफ सरकार की भारी फजीहत हुई वहीं जनरल मुशर्रफ ने न्यायपालिका से टकराव मोल लेकर एक और लॉबी को अपने खिलाफ कर लिया। लाहौर के बाद कराची में आयोजित एक रैली में जाने से पहले बर्खास्त चीफ जस्टिस इफितखार चौधरी के समर्थकों और सरकार समर्थकों के बीच हुई भारी हिंसा में ५० से ज्यादा लोग मारे गए थे और भारी तादाद में घायल हुए थे। जनरल मुशर्रफ को उसी वक्त लग गया था कि जो जनता उनके सत्ता संभालने समय सड़क पर जश्न मना रही थी वही अब उनके खिलाफ हो चुकी है। उधर अमेरिका बार-बार आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने के लिए रोज नए-नए बयान जारी कर रहा है। हाल ही में अमेरिका ने बयान दिया था कि वह अलकायदा के ठिकानों को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान के अंदर भी सैनिक कार्रवाई करने से नहीं हिचकेगा। यद्यपि अमेरिका के इस बयान का पाकिस्तान में सरकार और विपक्ष दोनों हलके में विरोध हुआ लेकिन इससे एक बात तो साफ हो ही गई कि पाकिस्तान अमेरिका की नीतियों का एक हद तक ही विरोध कर सकता है।

वतन वापसी के बाद मियां नवाज शरीफ के सामने फिर से कुछ मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। वजह यह है कि पाकिस्तान में अभी भी उनके ऊपर कई मामले लंबित हैं और पाकिस्तान ने संकेत दिए हैं कि इस फैसले के बाद यदि उनकी वतन वापसी होती है तो सरकार उनके खिलाफ बंद पड़े बाकी मामलों की फाइलें भी खोल सकती है। ज्ञातव्य है कि जिस वक्त जनाब नवाज शरीफ ने वतन छोड़ा था उस वक्त वे अपने ऊपर लगे दो आरोपों की सजा काट रहे थे अभी भी दो मुद्दे ऐसे हैं जिस पर सुनवाई अगर होती है तो उनकी मुश्किल बढ़ सकती हैं। एक हेलीकाप्टर के दुरुपयोग का मामला है और दूसरा जनरल परवेज मुशर्रफ के विमान को हवाई अड्डे पर न उतरने देने का। फिलहाल ये मामले ठंडे बस्ते में पड़े हैं लेकिन सरकार चाहे तो इसे एक बार फिर से खोल सकती है। बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि सैनिक सत्ता और न्यायपालिका के इस टकराव और अमेरिका के वर्चस्ववादी दवाबों के बीच से निकट भविष्य में पाकिस्तान में वास्तविक लोकतंत्र की पुनर्बहाली का रास्ता निकलेगा।

No comments:

Post a Comment