October 4, 2007

एक असफल राष्ट्र


सूडान



  • पंकज पराशर



पिछले दिनों पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसी स्थिति और अमेरिका के साथ भारत के परमाणु समझौते को लेकर मीडिया में हंगामा मचा रहा। इसलिए एक बड़ी खबर के बारे में लोगों को कुछ खास पता नहीं चल सका। जानी-मानी पत्रिका 'फॉरेन पॉलिसी` और 'फंड फॉर पीस` नामक संगठन ने दुनिया के असफल राष्ट्रों की सूची जारी की है। सूची में पहले स्थान पर सूडान को रखा है और उसे सबसे असफल राष्ट्र बताया गया है।

यह सूची विभिन्न राष्ट्रों में स्थायित्व के राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य और सामाजिक मापदंडों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। जिसका अर्थ होता है कि इन राष्ट्रों की स्थिति बिल्कुल खराब है और वे कभी भी विघटित हो सकते हैं। इस सूची में १२ वें नंबर पर हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अधिकारी ने कहा है कि सूडान के अशांत दारफुर इलाके में पिछले कुछ सालों से जारी संघर्ष में तकरीबन ५० हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका है। गौरतलब है कि दारफुर में पिछले साल शुरु हुए संघर्ष में १० लाख से अधिक लोगों को शरणार्थी बनने को विवश होना पड़ा। इन १० लाख विस्थापित लोगों में ४०-५० हजार लोगों की अब तक मौत हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आपात सहायता समन्वयक यान एगेलैन ने हालात को बेहद निराशाजनक बताते हुए कहा है कि दारफुर के संघर्ष में मासूम लोगों की जान जा रही है। दारफुर में संघर्ष का आरंभ विद्रोहियों के एक गुट द्वारा सरकारी ठिकानों को निशाना बनाने की घटनाओं से हुआ। विद्रोहियों का कहना है कि सूडान की सरकार अरबों के मुकाबले अश्वेत अफ्रीकियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही। दारफुर में अरसे से अरब और अफ्रीका समुदाय के लोगों के बीच जमीन और चारागाहों को लेकर संघर्ष चल रहा है। अश्वेतअफ्रीका समुदाय के दो गुटों सूडान लिबरेशन आर्मी और जस्टिस एंड इक्विलिटी मूवमेंट दारफुर में काफी समय से सक्रिय रहे हैं। इन दोनों गुटों ने सूडान सरकार पर यह आरोप लगाया है कि उसने अरब मिलीशिया को शह दी है।

अमेरिकी संसद ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास करके सूडान के दारफुर इलाके में चल रही खून-खराबे की घटना को नरसंहार बताते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ से तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है। चूंकि अफ्रीका में अमेरिका का अनुभव खासा कटु रहा है इसलिए वह सीधे हस्तक्षेप करने से गुरेज कर रहा है। सोमालिया में बिगड़ती स्थिति पर ध्यान न देने से अमेरिका पहले ही बहुत नुकसान उठा चुका है। सोमालिया से पहले अफ्रीकी देश रवांडा में १९९४ में नरसंहार में तकरीबन आठ लाख लोग मारे गए थे। दुखद यह है कि उस भीषणतम नरसंहार को रोकने के लिए न तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने कोई कोशिश की थी और न ही अमेरिका ने कोई कदम उठाया था। जिसके कारण उस वक्त अमेरिका की तीखी आलोचना हुई थी। इसलिए अमेरिका इस समय सूडान में सीधे-सीधे कोई कार्रवाई करने से बच रहा है।

इधर सूडान के उप राष्ट्रपति जॉन गरांग की एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई मौत को अस्वाभाविक मौत मानते हुए राष्ट्रपति उमर अल बशीर ने जांच के आदेश दिए हैं। गरांग की मौत के बाद राजधानी खार्तूम में विभिन्न गुटों के बीच आपसी संघर्ष में शुरू हो जाने के बाद से हुई हिंसा में १०० से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है। स्थिति यह है कि खार्तूम में हथियारबंद लोग खुलेआम घूम रहे हैं। डरे-सहमे मासूम लोग शहर छोड़कर भाग रहे हैं। एक ओर कई इलाकों में जाम की स्थिति है वहीं कई इलाके वीरान हो गए हैं। गरांग के प्रतिद्वंद्वदी पॉलीनो मातीप की मौत के बाद अफवाहों का बाजार गर्म होने के कारण भी वहां तनाव बढ़ गया है। हालांकि इधर जॉन गरांग के उत्तराधिकारी सालबा की ने लोगों से शांति की अपील की है लेकिन वहां हिंसा का यह नया दौर थम नहीं रहा है। यद्यपि सूडान में हिंसा का दौर पिछले २१ सालों से चल रहा है और इसी गृहयुद्ध की स्थिति को खत्म करने के लिए उप राष्ट्रपति जॉन गरांन ने जनवरी में एक शांति समझौता किया था।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सूडान की स्थिति के बारे में रिपोर्ट जारी करके आरोपों की झड़ी लगाते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रतिबंधों के बावजूद रूस और चीन सूडान की सरकार को हथियार भेज रहे हैं जिनका इस्तेमाल विद्रोही दारफुर में कर रहे हैं। मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी ने कुवैत, सऊदी अरब और बेलारूस पर भी सूडान को हथियार बचेने का आरोप लगाया है। मानवता के खिलाफ अपराध के आरोपों की जांच कर रहे लुईस मारेनो ओकैंपो ने कहा कि दारफुर में हत्या से पहले सामूहिक बलात्कार और सामूहिक रूप से हत्या की घटनाएं बड़ी संख्या में हो रही हैं। दुखद तथ्य यह है कि अधिकतर घटनाओं में विद्रोहियों से ज्यादा सैनिक शामिल रहे हैं। संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सेना ने केवल आम लोगों की ही हत्या नहीं की है बल्कि गांव के गांव उजाड़ा, बलात्कार किया और लोगों को प्रताड़ित करने में अमानवीयता की सारी हदें लांघ गई। सरकारी अधिकरियों ने भी ऐसे काम किए हैं जो नरसंहार से कम नहीं हंै।
गौरतलब है कि सूडान सरकार और विद्रोहियों के बीच जो शांति समझौता हुआ था उसके उल्लंघन का आरोप दोनों पक्ष एक दूसरे पर लगा रहे हैं। फिलवक्त दारफुर में जो हालात हैं उसमें कोई सुधार नहीं हुआ है। दक्षिणी दारफुर के कई शिविरों में हजारों लोग बीमार और कुपोषण के शिकार होकर डर के साये में जी रहे हैं। औरतों की स्थिति और भी खराब है। ज्यादातर लोगों की मौत भूख से भी हुई है और डरे-सहमे लोग अन्न के लिए तड़प रहे हैं। इन स्थितियों से बेखबर सरकार ने सूडान में संयुक्त राष्ट्र संघ के सबसे बड़े अधिकारी यान प्रोंक को देश छोड़कर चले जाने को कहा है। यान प्रोंक का कसूर सिर्फ यह है कि देश में जारी हिंसा में सेना की शिरकत की खबर को उन्होंने जाहिर कर दिया।

कवि, पत्रकार पंकज पराशर 'कादम्बनी` के वरिष्ठ कॉपी संपादक हैं।

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