October 4, 2007

विष्णुचंद्र शर्मा की तीन कविताएं


  • ज़हीर मियां


जहीर मियां ने आगे बढ़कर
कहा : 'आदाब`!

चौराहे पर
बहुत समय बाद मैंने
देखा ज़हीर मियां को!

कहां थे ज़हीर मियां!
मुम्बई विस्फोट में
पुलिस ले गई थी तहकीकात करने।
ठीक हो न!
सब मुसलमान, पारसी मुम्बई का
नहीं है गद्दार।
फिर भी पुलिस तहकीकात करती है-
ढाबों में,
झोपड़पट्टी में,
होटल में,
जुहू के तट पर,
ईद के दिन!
कौन बम कहां छिपाता या रखता है?

मैं देखता रहा गोल चेहरे के ज़हीर मियां की आंखों में।
वहां था खौफ़।
चेहरे के कटे निशान में फिर भी थी खौफ़नाक हंसी।
बस उसकी आवाज़ में कांप रहा था मुंबई।

आजाद देश का मुम्बई
खौफ़नाक दौर में याद कर रहा था
मुसलमान होने की पहचान!


लखीसराय में

बहन तब यहां
लक्खीसराय में पढ़ा रही थी।

आज नदी फैली है
फटे हुए दूध सी!

ट्रेन, (जिस पर मैं बैठा हूं)
नहीं जानती है
बहन कौन-सी कथा सुनाती
दर्जे में।

फटे दूध-सी नदी नहीं जानती है
बहन कब
आधी नदी पार करती थी!
बहन कब
जल पीकर
सोए हुए पत्थर पर
बैठ जाती थी!
बहन फिर
दर्जे की लड़कियों से कहती थी :
'आओ जल में दौडें

ट्रेन सुन रही है
(जिस पर मैं बैठा हूं) :
नदी आज भी दुहराती है :
'आओ जल में दौड़ें।`


साखी

कवि
जब मेरा बहकता है
अंधेरे में
रवीन्द्रनाथ
सूखी नदी में
भित्तिचित्र
बना जाते हैं

कवि
जब मेरा अंधड़ में
हताश हो जाता है
निराला
सूनी गलियों में
संगीत सुना जाते हैं।

कवि
जब मेरा आलोचक सा
बमकता है
तुलसीदास,
कबीर की साखी
सुना जाते हैं।

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