September 18, 2007

मानवाधिकार आंदोलन की प्रतीक शर्मिला चानू

पूर्वोत्तर

  • दिनकर कुमार

र्मिला ने घोषणा कर रखी है कि जब तक यह बर्बर कानून हटा नहीं लिया जाएगा तब तक वह भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगी। उनके विरोध की गूंज अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देने लगी है।

जब पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा की घटनाएं तेज हो गई तब ११ सितंबर १९५८ को सश बल (विशेषाधिकार) अधिनियम हालात को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया। उस समय पूर्वोत्तर की राज्य सरकारें आंतरिक सुरक्षा को बहाल रख पाने में विफल हो रहीं थीं। आरंभ में इस अधिनियम को मणिपुर और असम में लागू किया गया। उसके बाद समूचे पूर्वोत्तर में इसे लागू कर दिया गया।

इस अधिनियम के अनुच्छेद ३ के तहत राज्यपाल या राज्य प्रशासन के प्रमुख को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी क्षेत्र को वैसी स्थिति में 'अशांत क्षेत्र` घोषित कर सकता है जब परिस्थिति को नियंत्रित करने के लिए नागरिक प्रशासन के साथ सेना का इस्तेमाल जरूरी हो जाए। लेकिन अनुच्छेद ३ के तहत यह छूट नहीं दी गई है कि किसी भी क्षेत्र को अनिश्चित काल तक के लिए अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया जाए। ६ महीने के अंतराल पर इस घोषणा की समीक्षा करने का प्रावधान है।

इस अधिनियम के अनुच्छेद ४ के तहत अशांत क्षेत्र में तैनात कमीशंड आफिसर, वारंट आफिसर या नॉन-कमीशंड आफिसर समेत सभी सुरक्षा बल के उच्चाधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि 'जो भी व्यक्ति कानून और व्यवस्था के विपरीत कोई कार्य करता नजर आए तो वे उस पर गोली चला सकते हैं या शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं और उसकी जान भी ले सकते हैं।`

लेकिन सश बलों को स्वतंत्र रूप से काम नहीं करते हुए जिला प्रशासन के सहयोग से काम करना होगा। हालांकि एक बात आईने की तरह साफ है कि इस अधिनियम के जरिए सुरक्षा बलों को असीम अधिकार प्रदान किए गए हैं। इस अधिनियम के विरोध की भी वजह यही है कि आम नागरिकों पर सुरक्षा बल के जवान अत्याचार करते हैं। इस तरह के अत्याचार के कई उदाहरण मौजूद हैं , जिनके चलते पूर्वोत्तर में सश बल (विशेषाधिकार) अधिनियम का विरोध हो रहा है।

इंफाल के चूमनोम लैकोई डाकराबा इलाके में ३० अक्टूबर १९८२ को २२ वर्षीय खिलाड़ी खैदेम इमोचा सिंह की हत्या मणिपुर राइफल्स के जवानों ने बर्बरतापूर्वक कर दी थी। इस हत्याकांड से उत्तेजित होकर मणिपुर की जनता ने सश बल (विशेषाधिकार) अधिनियम को खत्म करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।
११ जुलाई, २००४ को असम राइफल्स के जवानों ने थांगजान मनोरमा नाम मणिपुरी युवती के साथ बलात्कार किया था और फिर उसकी हत्या कर दी थी। मनोरमा पर प्रतिबंधित संगठन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के साथ संपर्क रखने का आरोप लगाया गया था। मनोरमा की नृशंस हत्या से क्षुब्ध होकर लगभग १५ अधेड़ महिलाओं ने इंर्फाल के कांगला किला के सामने सुरक्षा बलों के खिलाफ नग्न होकर प्रदर्शन किया था। इस घटना से देश भर का ध्यान मणिपुर में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति आकर्षित हुआ।

इस अधिनियम के तहत होनेवाले अत्याचारों के विरोध में मणिपुर की लौह महिला इरोम चानू शर्मिला सात वर्षों से भूख हड़ताल कर रही हैं और उनकी वजह से अधिनियम के खिलाफ जनांदोलन तीव्र होता गया है। नवंबर २००० में असम राइफल्स के काफिले पर उग्रवादियों ने हमला किया। जिसके बाद सुरक्षा बल के जवानों ने बस अड्डे पर पड़े दस बेगुनाह लोगों की हत्या कर दी। इस घटना से आहत होकर शर्मिला चानू ने भूख हड़ताल शुरू कर दी। अधिनियम का प्रबल विरोध होते देख भारत सरकार ने सर्वोच्च-न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी गठित की जिसे यह सुझाव देना था कि अधिनियम को हटा देना चाहिए या उसमें संशोधन करना चाहिए। कमेटी ने अधिनियम को हटाने की सिफारिश करते हुए कुछ प्रावधानों को गैर कानूनी गतिविधियां (निरोधक) अधिनियम में जोड़ने की बात कही थी। सरकार ने कमेटी के सुझावों पर गौर करना जरूरी नहीं समझा।

भूख हड़ताल कर रही शर्मिला को धारा ३०९ के तहत आत्महत्या की कोशिश के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में शर्मिला को जमानत पर छोड़ा गया। ४ अक्टूबर २००६ को शर्मिला ने दिल्ली पहुंचकर भूख हड़ताल करते हुए सश बल (विशेषाधिकार) अधिनियम को हटाने की मांग की। दिल्ली में भी शर्मिला को गिरफ्तार कर एम्स में दाखिला किया गया।
इस दौरान मणिपुर की यात्रा पर आए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने ऐतिहासिक कांगला किले से घोषणा की कि साश बल (विशेषाधिकार) अधिनियम में संशोधन कर इसे अधिक मानवीय बनाया जाएगा लेकिन उन्होंने जीवन रेड्डी कमेटी की सिफारिशों को लागू करने के संबंध में कोई आश्वासन नहीं दिया। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि जब तक हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक पूर्वोत्तर से सश बलों को नहीं हटाया जाएगा।

शर्मिला ने घोषणा कर रखी है कि जब तक यह बर्बर कानून हटा नहीं लिया जाएगा तब तक वे भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगी। अहिंसक तरीके से प्रतिरोध जताने के क्षेत्र में शर्मिला ने कीर्तिमान स्थापित किया है। उनका मनोबल तोड़ने के लिए उन्हें बार-बार गिरफ्तार किया जाता रहा है और उनकी भूख हड़ताल खत्म करने के लिए नाक में नली डालकर तरल खाद्य पदार्थ उनके शरीर में पहंुचाने की कोशिश होती रही है।

अब शर्मिला के विरोध की गूंज अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई देने लगी है। उन्हें इस वर्ष मानवाधिकारों के लिए दिए जानेवाले एक प्रतिष्ठित पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है। हालांकि शर्मिला ने कहा है कि उन्हें किसी पुरस्कार की आकांक्षा नहीं है। वे सिर्फ अपने राज्य से उस काले कानून को हटाने की मांग कर रही हैं जिसकी वजह से बेगुनाहों पर जुल्म ढाए जाते हैं, दूसरी तरफ मणिपुर की सरकार ने हमेशा की तरह २७ मई २००७ को विवादित अधिनियम की अवधि छह महीने लिए और बढ़ा दी है।

शर्मिला का सवाल है कि एक लोकतांत्रिक देश में दो तरह के कानून कैसे हो सकते हैं? किसी भी देश की सेना को आम नागरिक की हत्या करने का अधिकार किस तरह प्रदान किया जा सकता है? पूर्वोत्तर के नागरिक इन्हीं सवालों के साथ महसूस करते हैं कि केंद्र सरकार उनके साथ सौतेला बर्ताव कर रही है। केंद्र के प्रति बढ़ता गुस्सा पूर्वोत्तर में उग्रवाद के लिए इंर्धन का काम कर रहा है।

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