पाकिस्तान
- पंकज पराशर
आखिरकार 'ऑपरेशन साइलेंस` कामयाब रहा। राजधानी इस्लामाबाद स्थित लाल मस्जिद को आतंकवादियों से सेना ने मुक्त करवा लिया। इस मसले को लेकर पाकिस्तान की सरकार और आतंकवादियों के बीच पिछले छ: महीने से जारी वार्ता के विफल हो जाने के बाद से सैनिक हुकूमत लगातार पशोपेश की स्थिति से गुजर रही थी। आतंकवादी महिलाओं और बच्चों को ढाल की तरह इस्तेमाल करके सरकार को लगातार दबाव की स्थिति में रखने की रणनीति पर अमल कर रहे थे। असल में लाल मस्जिद को लेकर तनाव तब पैदा होना शुरु हुआ जब कुछ पुलिसकर्मियों और आम नागरिकों का अपहरण किया गया। मस्जिद परिसर में रह रहे कट्टरपंथी उन्हें गैर इस्लामिक गतिविधियों में मुब्तिला मानते थे। कई महीनों से लाल मस्जिद के मौलवी और छात्र राजधानी इस्लामाबाद में शरिया कानून लागू करने के लिए अभियान चला रहे थे और मस्जिद परिसर आतंकवादियों के शिविर में तब्दील होता जा रहा था। इसके बाद भी सरकार व्यापक जन विरोध के डर से कोई कार्रवाई करने से हिचक रही थी। यहां तक कि कार्रवाई से एक दिन पहले जनरल मुशर्रफ ने मस्जिद के प्रबंधन और आतंकवादियों को चेतावनी दी थी कि यदि वे हथियार नहीं डालते हैं तो सैनिक कार्रवाई में मारे जाएंगे। मगर कट्टरपंथी नेता अब्दुल रशीद गाजी ने जनरल मुशर्रफ की इस चेतावनी के बाद भी वही अड़ियल रुख अपना रखा था, जिसके बाद मुशर्रफ के सामने विकल्प लगातार सीमित होते जा रहे थे। अंतत: सेना को कार्रवाई का आदेश दिया गया और तकरीबन ३६ घंटे चली इस कमांडो कार्रवाई में सेना के १० जवान सहित ७५ लोग मारे गए। मारे गए लोगों में प्रमुख कट्टरपंथी नेता अब्दुल रशीद गाजी भी शामिल हंै। इस कार्रवाई से पहले लाल मस्जिद परिसर से करीब १३०० लोग बाहर निकलने में कामयाब रहे। हालांकि अभी तक यह खुलासा नहीं हुआ है कि सेना ने जब कार्रवाई शुरु की तो उस वक्त मस्जिद परिसर में कितने लोग थे?
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में स्थित लाल मस्जिद का इस्लामिक कट्टरपंथी और आतंकवाद से बहुत पुराना नाता रहा है। ९/११ की घटना के बाद जब पाकिस्तान आतंकवाद से कथित मुकाबले में अमेरिका का प्रमुख सहयोगी बन गया तब से लाल मस्जिद में चलने वाली संदेहास्पद गतिविधियां खुलेआम सामने आ गइंर्। खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया गया कि खतरनाक आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद इसी मस्जिद से अमेरिका के खिलाफ रणनीतियां तैयार करने लगा था। इन गतिविधियों से यहां की सरकार वाकिफ नहीं थी, यह विश्वसनीय नहीं है। क्योंकि लाल मस्जिद इस्लामाबाद के अमीरों के इलाके में है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का मुख्यालय इस मस्जिद से सिर्फ कुछ ही कदमों की दूरी पर है। वहां आकर नमाज पढ़ने वालों में आईएसआई के अफसरों सहित वरिष्ठ नौकरशाह भी होते थे। लाल मस्जिद को वहां के वरिष्ठ अधिकारियों की सरपरस्ती हासिल थी जिसकी वजह से सरकार काफी दिनों तक कार्रवाई करने से हिचकती रही।
इस कार्रवाई के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि वे पाकिस्तान से दहशतगर्दी के खात्मे के लिए पूरी तरह वचनबद्ध हैं। इस कार्रवाई में शामिल सैनिकों की मौत को उन्होंने शहादत बताते हुए कहा कि उनका खून देश के काम आया। अफसोस के साथ मुशर्रफ ने कहा कि हमें अपने ही लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी क्योंकि वे रास्ता भटक कर आतंकवाद की ओर चले गए थे। इस संबोधन में उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान अपने किसी भी मदरसे को आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनने देगा। मगर मुशर्रफ की इन बातों का कितना असर हुआ इसका पता इसी से चलता है कि लाल मस्जिद पर कार्रवाई के तत्काल बाद पूरे पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया। अलकायदा के दूसरे नंबर के नेता अयमन अल जवाहिरी ने लाल मस्जिद पर हुई कार्रवाई का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादियों से हमला करने का आह्उाान किया है। एक इंटरनेट वेबसाइट पर जारी ऑडियो रिकॉर्डिंग में जवाहिरी ने कहा कि 'यह पाकिस्तानी मुसलमानों, पाकिस्तानी बुद्धिजीवियों और इस्लामी दुनिया के बुद्धिजीवियों को स्पष्ट संदेश है कि पाकिस्तान के मुसलमानों को सिर्फ जिहाद के जरिये ही मुक्ति मिल सकती है।` इस आह्उावान का कितना असर हुआ है यह तो अभी आकलन नहीं किया गया है मगर लाल मस्जिद पर कार्रवाई के विरोध में पाकिस्तान में सूबा सरहद के काबायली इलाके उत्तरी वजीरिस्तान में एक आत्मघाती हमले में २४ सैनिक मारे गए। उसके एक दिन बाद ही एक और आत्मघाती कार बम हमले में तकरीबन १० और सैनिक मारे गए हैं। राजधानी इस्लामाबाद में मुतहिदा मजलिस-ए-अमल की एक रैली में सैकड़ों लोगों को संबोधित करते हुए गठबंधन के प्रमुख नेता मौलाना अब्दुल गफूर हैदरी ने कहा कि 'लाल मस्जिद में हुई कार्रवाई पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ के निरंकुश शासन के लिए आखिरी फैसला साबित होगा। अब पाकिस्तान के अंदर हर जगह लाल मस्जिदें होंगी।`
नवाज शरीफ की सरकार में विदेश मंत्री रह चुके सरताज अजीज कहते हैं कि अब मुशर्रफ के सामने वाकई गंभीर संकट है। अभी हाल ही में कराची में सरकार विरोधी और सरकार समर्थक पार्टियों के बीच भारी हिंसा हुई थी जिसमें तकरीबन ४० से ज्यादा लोग मारे गये थे। परवेज मुशर्रफ के पास जो भी विकल्प थे वह तकरीबन खत्म हो गये हैं। अगर मुशर्रफ ने आपातकाल की घोषणा करके देश में मार्शल लॉ लागू किया तो सड़कों पर हिंसा का दौर शुरू होने का खतरा है। ऐसी स्थिति में उन्हें अपने सहयोगियों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बिरादरी, खासतौर से अमेरिका का भयंकर विरोध झेलना पड़ सकता है।
लाल मस्जिद की घटना के बाद से पाकिस्तान के सूबा सरहद और कबायली उत्तरी वजीरिस्तान में लगातार सैनिकों और पुलिस के जत्थों पर हमले जारी हैं। उस कार्रवाई के बाद इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों ने न केवल लाल मस्जिद के समानांतर कई और मस्जिद बना देने की घोषणा की है बल्कि वे अपने एलाने-जंग को अंजाम तक भी पहुंचा रहे हैं। लाल मस्जिद की घटना के असर का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सीमा प्रांत के आतंकवादी संगठनों ने सरकार के साथ हुए शांति समझौते के करार को तोड़ दिया है और लगातार हमले कर रहे हैं। अल कायदा और पाकिस्तान के दूसरे भूमिगत चरमपंथी संगठन लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई का बदला लेने के लिए पहले ही राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, उनके मंत्रियों और सेना को निशाना बनाने का संकल्प जता चुके हैं। इसी साल अप्रैल में गृह मंत्री आफताब शेरपाओ ऐसे ही आत्मघाती हमले में बाल-बाल बचे थे। राष्ट्रपति मुशर्रफ की हत्या की कई साजिशों का भी पूर्व में पर्दाफाश हो चुका है।
लाल मस्जिद पर कमांडो कार्रवाई के बाद से सूबा सरहद में चरमपंथियों और आत्मघाती हमलों में कोई ५० सैनिक मारे गए हैं।
जस्टिस इफितखार चौधरी के निलंबन को अवैध ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में दोबारा उनकी बहाली हो गई है और फिलहाल उनके विरोध में वकील लाबी कुछ समय के लिए मौन हो चुकी है। मुशर्रफ की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। एक ओर जहां वह सैन्य शासन से आजिज आ चुके वकीलों और पेशेवरों के आंदोलन का सामना कर रहे हैं, वहीं विपक्षी पार्टियां भी उनके खिलाफ लगातार एकजुट हो रही हैं। संयुक्त अरब अमीरात में भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से मुशर्रफ की मुलाकात भी बेनतीजा रही। बेनजीर ने कहा कि अगर मुशर्रफ वर्दी में बने रहते हैं तो उनकी पार्टी उन्हें राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार नहीं करेगी। परवेज मुशर्रफ की ओर से इस सिलसिले में अब तक कोई बयान नहीं आया है। घोर अलोकतांत्रिक बात यह है कि इस बातचीत के इस पूरे परिदृश्य में नवाज शरीफ कहीं नहीं हैं। गौरतलब है कि हाल में पाकिस्तान के मुख्य विपक्षी दलों के नेताओं ने लंदन में मिलकर 'ऑल पार्टीज डेमोक्रेटिक मूवमेंट` नाम से एक गठबंधन बनाने का फैसला किया था।
उधर अमेरिका ने आतंकवाद के मुद्दे पर सख्ती दिखाते हुए कहा है कि ओसामा बिन लादेन को पकड़ने या मारने के लिए अमरीका कुछ भी करने को तैयार है जिसमें पाकिस्तान के कबायली इलाके पर हमला भी शामिल है। इसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तानी अधिकारियों ने अपने हिसाब से आलोचना की है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे गंभीरता से लिया है।
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में स्थित लाल मस्जिद का इस्लामिक कट्टरपंथी और आतंकवाद से बहुत पुराना नाता रहा है। ९/११ की घटना के बाद जब पाकिस्तान आतंकवाद से कथित मुकाबले में अमेरिका का प्रमुख सहयोगी बन गया तब से लाल मस्जिद में चलने वाली संदेहास्पद गतिविधियां खुलेआम सामने आ गइंर्। खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया गया कि खतरनाक आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद इसी मस्जिद से अमेरिका के खिलाफ रणनीतियां तैयार करने लगा था। इन गतिविधियों से यहां की सरकार वाकिफ नहीं थी, यह विश्वसनीय नहीं है। क्योंकि लाल मस्जिद इस्लामाबाद के अमीरों के इलाके में है। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का मुख्यालय इस मस्जिद से सिर्फ कुछ ही कदमों की दूरी पर है। वहां आकर नमाज पढ़ने वालों में आईएसआई के अफसरों सहित वरिष्ठ नौकरशाह भी होते थे। लाल मस्जिद को वहां के वरिष्ठ अधिकारियों की सरपरस्ती हासिल थी जिसकी वजह से सरकार काफी दिनों तक कार्रवाई करने से हिचकती रही।
इस कार्रवाई के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि वे पाकिस्तान से दहशतगर्दी के खात्मे के लिए पूरी तरह वचनबद्ध हैं। इस कार्रवाई में शामिल सैनिकों की मौत को उन्होंने शहादत बताते हुए कहा कि उनका खून देश के काम आया। अफसोस के साथ मुशर्रफ ने कहा कि हमें अपने ही लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी क्योंकि वे रास्ता भटक कर आतंकवाद की ओर चले गए थे। इस संबोधन में उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान अपने किसी भी मदरसे को आतंकवादियों का अड्डा नहीं बनने देगा। मगर मुशर्रफ की इन बातों का कितना असर हुआ इसका पता इसी से चलता है कि लाल मस्जिद पर कार्रवाई के तत्काल बाद पूरे पाकिस्तान में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया। अलकायदा के दूसरे नंबर के नेता अयमन अल जवाहिरी ने लाल मस्जिद पर हुई कार्रवाई का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादियों से हमला करने का आह्उाान किया है। एक इंटरनेट वेबसाइट पर जारी ऑडियो रिकॉर्डिंग में जवाहिरी ने कहा कि 'यह पाकिस्तानी मुसलमानों, पाकिस्तानी बुद्धिजीवियों और इस्लामी दुनिया के बुद्धिजीवियों को स्पष्ट संदेश है कि पाकिस्तान के मुसलमानों को सिर्फ जिहाद के जरिये ही मुक्ति मिल सकती है।` इस आह्उावान का कितना असर हुआ है यह तो अभी आकलन नहीं किया गया है मगर लाल मस्जिद पर कार्रवाई के विरोध में पाकिस्तान में सूबा सरहद के काबायली इलाके उत्तरी वजीरिस्तान में एक आत्मघाती हमले में २४ सैनिक मारे गए। उसके एक दिन बाद ही एक और आत्मघाती कार बम हमले में तकरीबन १० और सैनिक मारे गए हैं। राजधानी इस्लामाबाद में मुतहिदा मजलिस-ए-अमल की एक रैली में सैकड़ों लोगों को संबोधित करते हुए गठबंधन के प्रमुख नेता मौलाना अब्दुल गफूर हैदरी ने कहा कि 'लाल मस्जिद में हुई कार्रवाई पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ के निरंकुश शासन के लिए आखिरी फैसला साबित होगा। अब पाकिस्तान के अंदर हर जगह लाल मस्जिदें होंगी।`
नवाज शरीफ की सरकार में विदेश मंत्री रह चुके सरताज अजीज कहते हैं कि अब मुशर्रफ के सामने वाकई गंभीर संकट है। अभी हाल ही में कराची में सरकार विरोधी और सरकार समर्थक पार्टियों के बीच भारी हिंसा हुई थी जिसमें तकरीबन ४० से ज्यादा लोग मारे गये थे। परवेज मुशर्रफ के पास जो भी विकल्प थे वह तकरीबन खत्म हो गये हैं। अगर मुशर्रफ ने आपातकाल की घोषणा करके देश में मार्शल लॉ लागू किया तो सड़कों पर हिंसा का दौर शुरू होने का खतरा है। ऐसी स्थिति में उन्हें अपने सहयोगियों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बिरादरी, खासतौर से अमेरिका का भयंकर विरोध झेलना पड़ सकता है।
लाल मस्जिद की घटना के बाद से पाकिस्तान के सूबा सरहद और कबायली उत्तरी वजीरिस्तान में लगातार सैनिकों और पुलिस के जत्थों पर हमले जारी हैं। उस कार्रवाई के बाद इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों ने न केवल लाल मस्जिद के समानांतर कई और मस्जिद बना देने की घोषणा की है बल्कि वे अपने एलाने-जंग को अंजाम तक भी पहुंचा रहे हैं। लाल मस्जिद की घटना के असर का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सीमा प्रांत के आतंकवादी संगठनों ने सरकार के साथ हुए शांति समझौते के करार को तोड़ दिया है और लगातार हमले कर रहे हैं। अल कायदा और पाकिस्तान के दूसरे भूमिगत चरमपंथी संगठन लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई का बदला लेने के लिए पहले ही राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ, उनके मंत्रियों और सेना को निशाना बनाने का संकल्प जता चुके हैं। इसी साल अप्रैल में गृह मंत्री आफताब शेरपाओ ऐसे ही आत्मघाती हमले में बाल-बाल बचे थे। राष्ट्रपति मुशर्रफ की हत्या की कई साजिशों का भी पूर्व में पर्दाफाश हो चुका है।
लाल मस्जिद पर कमांडो कार्रवाई के बाद से सूबा सरहद में चरमपंथियों और आत्मघाती हमलों में कोई ५० सैनिक मारे गए हैं।
जस्टिस इफितखार चौधरी के निलंबन को अवैध ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट में दोबारा उनकी बहाली हो गई है और फिलहाल उनके विरोध में वकील लाबी कुछ समय के लिए मौन हो चुकी है। मुशर्रफ की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। एक ओर जहां वह सैन्य शासन से आजिज आ चुके वकीलों और पेशेवरों के आंदोलन का सामना कर रहे हैं, वहीं विपक्षी पार्टियां भी उनके खिलाफ लगातार एकजुट हो रही हैं। संयुक्त अरब अमीरात में भूतपूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से मुशर्रफ की मुलाकात भी बेनतीजा रही। बेनजीर ने कहा कि अगर मुशर्रफ वर्दी में बने रहते हैं तो उनकी पार्टी उन्हें राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार नहीं करेगी। परवेज मुशर्रफ की ओर से इस सिलसिले में अब तक कोई बयान नहीं आया है। घोर अलोकतांत्रिक बात यह है कि इस बातचीत के इस पूरे परिदृश्य में नवाज शरीफ कहीं नहीं हैं। गौरतलब है कि हाल में पाकिस्तान के मुख्य विपक्षी दलों के नेताओं ने लंदन में मिलकर 'ऑल पार्टीज डेमोक्रेटिक मूवमेंट` नाम से एक गठबंधन बनाने का फैसला किया था।
उधर अमेरिका ने आतंकवाद के मुद्दे पर सख्ती दिखाते हुए कहा है कि ओसामा बिन लादेन को पकड़ने या मारने के लिए अमरीका कुछ भी करने को तैयार है जिसमें पाकिस्तान के कबायली इलाके पर हमला भी शामिल है। इसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तानी अधिकारियों ने अपने हिसाब से आलोचना की है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे गंभीरता से लिया है।
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