'Jan Vikalp' has its own active participation in bringing Justice, Equality and liberty to society. This Hindi monthly, published from Patna, one of the oldest cities of India.
July 12, 2007
मुसाफिर बैठा
अंतरिक्ष की धर्म यात्रा
जून, २००७ को अटलांटिस अंतरिक्ष यान से पृथ्वी पर लौटी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की सफलता एवं वैज्ञानिक कद को लेकर भारतीय इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनलों एवं अखबारों में भारतीय गौरव गाथा बनाकर समाचार परोसने का जो पागलपन सवार रहा वह कई मायनों में आपत्तिजनक है। सुनीता की सफलता को भारतीय गौरव के साथ जोड़ के देखा जाना, वैज्ञानिक उपलब्धि में धार्मिक पूजा-अनुष्ठानों, दुआ-मन्नतों एवं ग्रह-नक्षत्रों आदि की अंधपरक ज्योतिषीय भूमिका को श्रेय दिया जाना हमारे मीडिया की तार्किक सोच शून्यता तथा सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति घोर लापरवाही को दर्शाता है। यह वैज्ञानिक चेतना एवं तर्क-बुद्धि पर तमाचा लगाने जैसा है। भूत-प्रेत, ओझा-भगत की बेसिर पैर की टीआरपी बढ़ाऊ गढ़ंत कथाओं को रस ले-लेकर लोगों को भरमाने वाला भारतीय मीडिया आखिर १६ वीं शताब्दी में कब तक जीता रहेगा?
मन बहलाने को ये ख्याल जरूर अच्छे हैं वरना दुआओं, कामनाओं, प्रार्थनाओं के फलीभूत होने जैसी बात बेमानी है । सफलता-असफलता, सुख-दु:ख जैसी बातें हमारे कार्यों एवं किंचित परिस्थितिजन्य तत्वों पर निर्भर करती हैं न कि किसी ईष्ट देव की चापलूस, स्वार्थसनी पूजा-अराधना पर। जब पूजा-नमाज से ही अंतरिक्षकीय वैज्ञानिक कर्म सधने हैं तो पांच-पांच बार नमाज अदा करने वालों और घंटों ईश्वर के ध्यान-अभ्यर्थना में लीन रहने वालों को ही क्यों न इस वैज्ञानिक उद्यम में भी लगा दिया जाए।
बहारहाल, सुनीता विलियम्स भारतवंशी कहीं से नहीं ठहरतीं, अलबत्ता, उनके डाक्टर पिता इस मायने में जरूर भारतवंशी हैं कि उन्होंने भारतीय माता-पिता के यहां भारत में जन्म लिया और अपने पुरातनपंथी भारतीय संस्कारों को उस खूबी से सहेजे रखा कि पुत्री सुनीता भी भारतीय वर्ण व्यवस्था की पोषक धर्मपुस्तक भगवद् गीता और हनुमानचालीसा अंतरिक्ष में ले गयी थीं। अगर यह बात भारतीय सवर्ण हिन्दू मीडिया का प्रोपगैंडा नहीं है तो विज्ञान को धार्मिक चपत लगाने में इन पिता-पुत्री की भूमिका अविस्मरणीय रहेगी। क्या यह अंध आस्था, धार्मिक घालमेल हमारे मीडिया की चिंता का विषय नहीं होना चाहिए? सुनीता की दैनंदिनी एवं जीवन से संबद्ध भरसक सभी जनकारियां (जरूरी एवं उलजुलूल व फिजूल तक) जुटाने-देने वाला हमारा मीडिया यह जानकारी क्यों नहीं दे पाया कि भगवतगीता और हनुमानचालीसा का सुनीता ने कितना और कैसा उपयोग किया। क्या ये पुस्तकें अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के लिए भी लाभप्रद हो सकती थीं। क्या सुनीता का यह कृत्य विज्ञान और विवेक को गाली देने वाला नहीं था?
इस अंतरिक्ष यात्रा प्रकरण में एक धंधेबाज व चालाक राजनीतिज्ञ से कमतर बयान और कारनामे सुनीता और उसके पिता के भी नहीं रहे। जहां सुनीता इस अंतरिक्ष यात्रा की उपलब्धि का सारा श्रेय भारत की प्राचीन परंपरा (कह लें-प्रार्थनाओं, मन्नतों, दुआओं के फलीभूत होने व भगवद्गीता व हनुमानचालीसा के पाठ-प्रताप!) को देती हैं वहीं उसके पिता का भी राजनीतिक कौशल से भरा बयान आता है। भारतीय मीडिया द्वारा सुनीता को मिस यूनिवर्स का तमगा देने पर पिता दीपक पांड्या अपनी बेटी की सलामती के लिए भारत में हुई प्रार्थनाओं का अभार जताते हुए कहते हैं कि मैं सुनीता को मिस यूनिवर्स की बजाए भारत की बेटी कहना पसंद करूंगा। वैसे, मेरी समझ में भारतीय धंधेबाज मीडिया से यहां एक चूक हो गई लगती है। किसी ने सुनीता की विदेशी मां एवं पति से यह नहीं कहलवाया कि भारतीय परंपरा में उनकी भी अगाध श्रद्धा है और सुनीता की सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों में भारतीय परंपरा के अलावा अन्य किसी का कुछ भी योगदान नहीं है।
वैसे, यहां अमिताभ पांडेय की एक बात (विज्ञान का ज्ञान/जनसत्ता ३० जून, ०७) भी काबिलेगौर है कि हिंदुुत्व के गढ़ गुजरात में सुनीता विलियम्स को तहेदिल से अपना लिया गया, जिनकी मां एक अंग्रेज ईसाई और पिता अमेरिकन हैं। लेकिन गुजरात में रहकर उन्होंने एक गैर हिन्दू के साथ विवाह जैसा 'हिंदू द्रोही` कृत्य किया होता तो कुख्यात बाबू बजरंगी जैसे लोग उनके साथ कैसा व्यवहार करते?
'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना` बने भारतीय मीडिया एवं कुछ सिरफिरे एवं भेड़चाल बुद्धि भारतीयों के लिए सुनीता विलियम्स के ये शब्द कितने सालने वाले रहे होंगे कि वह अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लौटते सबसे पहले अपने विदेशी पति और पालतू कुत्ते से मिलना चाहेगी।
सुनीता की बहादुरी एवं प्रतिभा के किस्से गढ़ने-सुनाने में नौ डिबिया तेल लगाने वाले भारतीय मीडिया का ध्यान इस तथ्य पर क्यों नहीं गया कि सुनीता का कारनामा कोई अकेले दम पर नहीं था, यह एक टीम वर्क था, जिसमें उसके साथ लौटे अन्य छह अंतरिक्ष वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष में रह गये अन्य वैज्ञानिकों एवं इस अभियान से जुड़े नासा के अन्य वैज्ञानिकों-तकनीशियनों का बुद्धि कौशल सम्मिलित था। न अंतरिक्ष में ठहरने और न ही वापस लौटने में सुनीता की कोई अतिरिक्त बहादुरी या प्रतिभा प्रदर्शित होती है। सुनीता खुद भी कहती हैं कि मैं पढ़ाई में बस ठीक-ठाक थी और अंतरिक्ष विज्ञान को कैरियर बनाना मेरी पहली प्राथमिकता नहीं थी। यानी वह औसत बुद्धि की थी और उन्होंने अन्य अंतरिक्ष यात्रियों से हटकर कोई विशिष्ट प्रतिभा वाले काम का संपादन नहीं किया है। उनकी ही मानें तो उन्हें तो काम से ज्यादा चाम प्यारा था, क्योंकि उन्होंने महज इस डर से नौसेना का फ्लाइट स्कूल छोड़ दिया था कि इसमें जाने पर लम्बे खूबसूरत बाल कटवाने पड़ेंगे।
जहां अधिसंख्यक भारतीय चैनल अटलांटिक अंतरिक्ष यान की पृथ्वी पर वापसी का तूल देकर लाइव टेलिकास्ट करने में लगे रहे वहीं अमेरिकी चैनल सीएनएन ने इस घटनाक्रम को कोई अतिरिक्त महत्व नहीं दिया, इस घटना को महज एक सामान्य समाचार के रूप में लिया, कोई सीधा प्रसारण नहीं हुआ। एक भारतीय चैनल के द्वारा ऐसा सीन क्रियेट किया गया मानो उसका रिपोर्टर अंतरिक्ष में बैठकर ही इस अंतरिक्ष यात्रा का जीवंत प्रसारण हमें मुहैया कर रहा हो।
अंतत: सूत्रवाक्य में कहे तो भारतीय मीडिया द्वारा सुनीता विलियम्स को ठोंक-पीट कर भारतीय गौरव व भक्ति की चाश्नी में डुबोया-सिझाया गया और कर्मभीरू, धर्मभीरू व नकली देशभक्त भारतीयों के लिए परोसा गया।
( जन विकलप, जुलाई,2007 )
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