October 8, 2009

एकांत




-विक्रम मुसाफिर


१.

भय की संकरी गली
नि:शब्द है
यातना शिविरों से
कूच कर गये हैं पूर्वज
चेतनाहीन उदास पहाड़
पगडंडियां चुन रहे हैं
अथाह मौन
क्षितिज के घुटनों पर
पनप रहा है
पत्थरों की नसों में
धधक रहा है प्रणय
विरह की चारागाहों में चुपचाप
उतर आया हूं मैं
एकान्त के जलस्रोतों में बहकर।

२.
स्मृति के पिरामिड में
मेरा एकांत
भटकता रहा
अन्वेषक प्रेत की तरह।


ग्राम-पो-श्रीवन, ठियोग, जिला : शिमला, हिमाचल प्रदेश

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