October 8, 2009

भूलना


  • कल्लोल चक्रवर्ती 


मैं अक्सर भूल जाता हूँ अपना छाता
कलम और रूमाल
दफ्तर जाते हुए भूलता हूँ
कई छोटे-छोटे काम।
कई बार बस पर बेध्यानी में भूलता हूँ
अपना स्टॉप
और उतरकर मुड़ता हूँ पीछे।
ऑफिस में अचानक कई महीने बाद पता चलता है
कि पुराना चपरासी नौकरी छोड़ गया है
और ठीक वैसी ही लाचारी लिए
जो मुसकराता हुआ चेहरा सामने है
वह उसका स्थानापन्न है।
भूलना कोई बीमारी नहीं है
यह दरअसल हमारी प्राथमिकता पर निर्भर करता है
कि किसी चीज का हमारे लिए कितना महत्व है।
जैसे इतने बरस बाद मैं नहीं भूल पाता
पहली कक्षा के सखा कन्हैया का चेहरा
जिसने माचिस की डिब्बी में
एक कौड़ी भेंट की थी मुझे।
जैसे लगातार नौकरियां बदलते रहने के बावजूद
अपने क्रूर मालिकों के चेहरे मुझे याद हैं।


जी-१, १/२२, राजेंद्र नगर, सेक्टर-५, साहिबाबाद, उत्तर प्रदेश. मो.-९९७१५८६११८

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