October 8, 2009

डेमोक्रेसी के इस राज में


- लनचेनबा मीतै



मणिपुरी कविता/अनुवाद : जगमल सिंह                

गड्ढे में नाले में कीचड़ है
राजपथ सना है कीचड़ से
पड़ा कूड़े का ढेर सब दरवाजों पर
अस्पताल भी बना है
कूड़े का ढेर।

बाजार में होता, सामानों का मोल-भाव
ऑफिस में भी होता नौकरियों का मोल-भाव
एल.पी.स्कूल में लड़ते हैं बच्चे
एसेम्बली हॉल में लड़ते हैं विधायक।
गली-गली में चोरी करते हैं लोग
राजमहल में भी चोरी करते हैं अधिकारी।
अधिकारियों द्वारा पकड़े गए जन-साधारण पर
पहरा देते हैं पहरेदार।
अधिकारी और राजा का भी
पहरा देते हैं पहरेदार।
वेश्याएं बेचती हैं वासनायुक्त शरीर
जिन्हें खरीदते हैं राजा और अधिकारी

यहां है डेमोक्रेसी का शासन
जिसकी है-एक ही रीति
जिसका है एक ही स्वरूप।

अनुवादक : २/४८, प्रताप नगर, व्यावर, राजस्थान-३०५९०१. मो.-९४१३९५०११७

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