July 14, 2007

अनीश अंकुर



चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


बोरिस येल्‍तसिन के बहाने



शायद कम ही लोगों को पता होगा कि बोरिस येल्ससिन की मृत्यु हो गयी। रूस के इस विवादस्पद पूर्व राष्ट्रपति का चुपचाप बगैर किसी हंगामे के चले जाने से कईयों को आश्चर्य हुआ होगा। रूस के वर्तमान राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के पहले एक दशक तक येल्ससिन रूस एवं सोवियत यूनियन की केन्द्रीय शख्सीयत थे। सोवियत यूनियन एवं समाजवाद के ध्वंस में प्रधान भूमिका की वजह से वे साम्राज्यवादी पश्चिमी मीडिया के प्रिय थे। कम्युनिज्म़ को ध्वस्त कर पूंजीवाद को एक तथाकथित लोकतंत्र के रास्ते पर ले जाने के लिए येल्तसिन को गोर्बाचेव के साथ ऐतिहासिक व्यक्ति बताया गया था। पर साम्राज्यवादी मुल्कों द्वारा ऐतिहासिक पुरुष बताए जाने वाले बोरिस येल्तसिन की शोकसभा में मात्र १०० के लगभग लोग इकट्ठे हुए। इन लोगों में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जार्जबुश (सीनियर) बिल क्लिंटन, सोवियत यूनियन के अंतिम राष्ट्रपति मिसाइल गोर्बाचेव, चंद दिनों पूर्व ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का पद छोड़ने वाले टोनीब्लेयर ने भी शामिल थे।

पिछली सदी के अंतिम दशक में सोवियत यूनियन से साम्यवाद के नाश एवं लोकतंत्र की स्थापना के लिए जिसे लगभग महानायक का दर्जा देने की कोशिश की गयी, उसकी शोकसभा में इतने ताकतवर रहे लोगों की मौजूदगी के बावजूद इतने कम लोग शोक प्रकट करने आयेंगे, इसका अंदाजा तो येल्तसिन के दुश्मनों तक को न होगा।
आइए, बोरिस येल्ससिन के व्यक्तित्व के बहाने थोड़ी पड़ताल विस्मृत होते जा रहे सोवियत यूनियन की कर लें। सोवियत यूनियन से समाजवाद का ध्वंस मात्र येल्तसिन एवं गोर्बाचेव की वजह से नहीं हुआ। स्टालिन की मृत्यु के पश्चात् साठ के दशक से ही सोवियत रूस में ऐसी प्रवृत्तियों का उदय हो गया था जिनमें राजनैतिक व्यवस्था के सुधार, जनवादीकरण, अर्थव्यवस्था (उद्योग, कृषि, शिक्षा, नौकरशाही) आदि में समाजवादी पुननिर्माण (चर्चित नाम पेरेस्‍त्रोइका ) की बातें शामिल थीं। सोवियत सरकार एवं कम्युनिस्ट पार्टी ने इन समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान न दिया।

पार्टी एवं जनता को विचारधारात्मक रूप से सजग बनाने की प्रक्रिया सचेत रूप से खत्म कर दी गयी थी। लोगों के भीतर असंतोष पलता जा रहा था। इन असंतोषों का हल ढूंढने के बजाए दमन शुरू हो गया। ऐसे में बीमार व अक्षम लियोनिद बे्रझनेव को आगे कर दिया गया। १९८२ में बे्रझनेव की मृत्यु के बाद यूरी आंद्रोपोव लाए गए। उन्होंने नौकरशाही व भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाए। आंद्रोपोव की बीमारी एवं १४ महीनों बाद उनकी मृत्यु के पश्चात् चेरेनेन्को आए जिनकी एक वर्ष बाद ही मृत्यु हो गयी। अंतत: मिखाइल गोर्वाचेव पार्टी के मुखिया एवं सरकार के प्रधान बनाए गए।

लंबे वक्त से जड़ जमाए गहरी समस्याओं के समाधान हेतु गोर्वाचेव ग्लासनोस्त (सुलेवन) ले आए। इसके पूर्व सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर की बहुत सारी दिक्कतों, परेशानियों के बारे में खुले विचार विमर्श नहीं किया गया था। ग्लासनोस्त का मतलब था खुली व लगभग अनियंत्रित सी आलोचना। ग्लासनोस्त आने के बाद पार्टी एवं सरकार में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए। इन नई परिस्थितियों का फायदा उठा कर ऐसी ताकतें सक्रिय हो उठीं जिसने सोवियत यूनियन के पूरे इतिहास के साथ-साथ समाजवाद को भी कलंकित करना शुरू कर दिया।

कम्युनिस्ट पार्टी के मास्को ईकाई के रसूख वाले सचिव बोरिस येल्तसिन ने खुद ही निरंकुश कदम उठाने शुरू कर दिए। पार्टी भीतर ही भीतर बिखरने लगी, जिसकी अभिव्यक्ति आमलोगों से पार्टी के अलगाव के रूप में दिखने भी लगी। एक ओर नौकरशाही के विरुद्ध सुलगता असंतोष और लंबी प्रक्रिया के दौरान राजनैतिक चेतना में निरंतर ह्उाास के घटित होते चले जाने का फल हुआ कि लोगों ने येल्तसिन द्वारा उठाए जा रहे कदमों का परिणाम सोचे समझे बिना उसे समर्थन देना शुरू किया।

इसकी राज्य, समाज, अर्थव्यवस्था एवं मीडिया सबमें प्रतिक्रिया हुई। राष्ट्रीयता का प्रश्न जो अब तक दबा था फिर से सिर उठाने लगा। राजनैतिक सामाजिक माहौल में आए ढीलेपन, ग्लासनोस्त आदि का समाजवाद के शत्रुओं ने पूरा फायदा उठाया। बोरिस येल्तसिन इन्हीं परिस्थितियों की उपज थे। सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी ने येल्तसिन के खतरनाक सुधारों वाले उन्माद पर अंकुश लगाने की कोशिश की। अपने विरुद्ध प्रतिक्रिया देख येल्तसिन ने पोलित ब्यूरो की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। तत्पश्चात् उसे मास्को ईकाई के सचिव पद से हटा दिया गया। लेकिन गोर्वाचेव ने येल्तसिन को पुननिर्माण की राष्ट्रीय समिति का डिप्टी चेयरमैन बना दिया। परेस्‍त्रोइका और ग्लासनोस्त के उन्मादी रथ को रोकने की फिर कोई कोशिश न की गयी।

वैसे तो सोवियत नेतृत्व मौलिक रूप से लेनिनवाद के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करता था, लेनिन के उद्धरणों से लेनिनवादी रास्ते पर मजबूती से जमे रहने की घोषणा की जाती पर व्यवहार में ठीक उल्टा किया जाता। सिद्धांत व्यवहार की खाई चौड़ी होती गयी। सैद्धांतिक विचलन का प्रभाव ये था कि गोर्वाचेव और येल्तसिन दोनों की यह आशा थी कि अमेरिका से रिश्ते सुधरने पर विश्व परिस्थितियां भी सुधर जायेंगी। १९८६ में गोर्वाचेव व रीगन के बीच वार्ता हुई। इसी वर्ष नवंबर क्रांति के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में गोर्वाचेव ने अफसोस के साथ कहा कि अमेरिकी पुस्तकों, फिल्मों तथा 'वायस ऑफ अमेरिका` को तो सोवियत यूनियन में काम करने की आाजादी दी गयी जबकि ऐसी ही छूट सोवियत संघ को अमेरिका में नहीं दी गयी।

इस उथल-पुथल भरे वक्त तमाम कम्युनिस्ट विरोधी, मार्क्सवाद लेनिनवाद विरोधी साम्राज्यवादी एजेंटों ने सोवियत यूनियन के भीतर प्रतिक्रिया की ताकतों के साथ मिलकर सात दशकों के सोवियत रूस की महान सफलता पर कालिख पोतने वाला अभियान शुरू कर दिया। सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के पॉलित ब्यूरो की ओर से इस अभियान को काउंटर करने की कोई कोशिश नहीं की गयी। बाद में पॉलित ब्यूरो के एक वरिष्ठ व प्रतिष्ठित नेता लिगाचेव ने इन काली शक्तियों के खिलाफ पहलकदमी न लेने के लिए सीधे गोर्वाचेव को जिम्मेदार ठहराया। लिगाचेव को पार्टी के मुखपत्र 'प्रावदा` में इन आरोपों का जवाब तक देने से रोका गया। सोवियत रूस में गोर्वाचेव, येल्तसिन एवं माकोलेव को छोड़ सभी बड़े सोवियत नेताओं के खिलाफ सरकारी स्तर पर अभियान चलाया गया। इसी दरम्यान राष्ट्रीयता एवं रेस (नस्ल) के मुद्दों पर दंगा लिसुवानिया एवं लातविया से बाहार भी फैलने लगा। विश्वप्रसिद्ध महाविनाशकारी चेर्नोबिल दुर्घटना ने लोगों का गुस्सा और बढ़ा दिया।

दो कॉशियन गणराज्यों आर्मेनिया एवं अजाबैजान में युद्ध आरंभ हो गया जिसमें हजारों लोग मारे गए। येल्तसिन की सेना के हाथों चेचन्यवासियों को मार डाला गया। रूस के भीतर हमले शुरू हो गए। यूक्रेन में अशांति फैल गयी।
कम्युनिस्ट पार्टी में आंतरिक संघर्ष बढ़ गए थे। पार्टी नेतृत्व में तमाम वैसे लोगों को लाया गया जो ग्लासनोस्त एवं पेरस्‍त्रोइका के प्रति वफादारी जताते थे। इन सबका क्लाइमेक्स जून १९८८ के कॉन्फ्रेंस में घटित हुआ। कान्फ्रेंस में समाजवाद की शानदार सफलताओं को मजबूत करने एवं बिखरती जा रही पार्टी को एकजूट करने संबंधी तनिक भी बातचीत न हुई।

आंतरिक लोकतंत्र से महरूम सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी ने इन भयावह परिणामों वाली गतिविधियों पर आशंका तक प्रकट न की। आम जनता को इन तमाम घटनाओं से परिचित कराने की कोई कोशिश न की गयी। इन सभी गलतियों की चिंता किए बिना गोर्वाचेव ने मजदूर वर्ग की नेतृत्वकारी भूमिका एवं जनवादी केंद्रीयता के सिद्धांतों को ठुकरा दिया। कांफ्रेंस में अचानक येल्तसिन प्रकट हुआ और उसने गोर्वाचेव का खुलेआम समर्थन किया और पार्टी को उच्च नेतृत्व में लिए जाने की बात की। पूरी कांफ्रेंस ने इस कदम का कड़ा प्रतिवाद किया।

पार्टी को अपने अनुकूल सुधारने में निष्फल होने पर गोर्वाचेव ने केन्द्रीय समिति के एक प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जिसका लब्बोलुुबाव यह था कि अब पार्टी सरकार पर कोई नियंत्रण स्थापित नहीं करेगी। १९८९ में बोरिस येल्तसिन ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान समाजवाद की निन्दा एवं पूंजीवाद की जमकर प्रशंसा की। येल्तसिन साम्राज्यवादी प्रचार माध्यमों के मुखपृष्ठों पर छाये रहने लगे। सोवियत यूनियन के भीतर गणराज्यों के आपसी संबंध ढीले पड़ने लगे। १९८७ में गोर्वाचेव ने अपनी बर्लिन-प्राग यात्रा में पूर्वी यूरोप के समाजवाद विरोध शक्तियों को प्रोत्साहित किया।

तमाम समाजवादी सिद्धांतों के खिलाफ रहने के बावजूद येल्तसिन सी.पी.एस.यू के भीतर रहा और इसी उलझन भरे अस्तव्यस्त वक्त में रूसी गणराज्य का राष्ट्रपति बनने में सफल हो गया। येल्तसिन ने सत्ता की इस मजबूत स्थिति का सोवियत यूनियन को तोड़ने में इस्तेमाल किया, पूंजीवाद के पक्ष में नारे लगाऐ और तानाशाह की तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया।

अमेरिका के राजनैतिक एवं सैन्य प्रमुख येल्तसिन के बेहद नजदीकी सलाहकार हो गए। इन लोगों द्वारा मीडिया में येल्तसिन की खूब तारीफ की जाती। इसी दरम्यान कम्युनिस्ट पार्टी की २८ वीं कांग्रेस में येल्तसिन ने इस बात पर काफी हल्ला मचाया कि रूसी गणराज्य का राष्ट्रपति पार्टी की सुनने के लिए बाध्य नहीं है। अंतत: येल्तसिन ने कांगे्रस से वॉकआउट कर दिया और सोवियत यूनियन को तोड़ने की वकालत करने वाले एक प्रदर्शन में शामिल हो गया।

पार्टी ने जनता को साम्राज्यवादी मंसूबों के खिलाफ समाजवाद के पक्ष में उतारने की इच्छाशक्ति खो दी थी। उसने अपनी वास्तविक दिशा भी खो दी थी। इससे जनता असहाय हो गयी। हालांकि लोगों ने जनमत संग्रह में सोवियत रूस को बरकार रखने के पक्ष में अपना मत दिया। लेकिन लोगों के इस जनादेश पर कोई ध्यान न दिया गया।
इन हंगामों के बीच गोर्वाचेव ने कम्युनिस्ट पार्टी के समाप्त होने की हैरतअंगेज घोषणाा कर दी। बोरिस येल्तसिन रूस का सर्वेसर्वा बन गया। सोवियत यूनियन बिलट गया, साम्राज्यवादी कैंप में अभूतपूर्व अह्लाद था। पूरे रूस को नरक के गड्ढे में धकेल कर येल्तसिन अपने कमान में सब कुछ आगे बढ़ाता चला गया। भ्रष्टाचार और स्कैंडल में येल्तसिन एवं उसके परिवार ने तमाम सीमाएं लांघ डालीं। पूरा देश उसके अवैध आदेशों से चलाया जाने लगा।

लूट, हत्या, हिंसक अपराध वहां की दिनचर्या का हिस्सा बन गया 'लोकतंत्र` की जीत के शोरशराबे में यह सब कुछ दबा दिया गया। संभवत: यही कारण है कि १९९९ में अपनी सत्ता ब्लादीमीर पुतिन को सौंपते वक्त येल्तसिन ने पूर्व शर्त रखी कि उसके अपराधों के विषय में कोई जांच न होगी।

सोवियत यूनियन की समाप्ति के बाद गोर्वाचेव को कभी भी ०.५ प्रतिशत से ज्यादा वोट न मिला। एक सर्वेक्षण में लगभग ७० प्रतिशत रूसियों ने माना कि येल्तसिन ने रूस को बहुत नुकसान पहुंचाया। ५० प्रतिशत लोगों ने कहा कि येल्तसिन को उसके अक्षम्य अपराधों के लिए कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
रूस आज असमाजिक तत्वों का स्वर्ग बना हुआ है। बड़े-बड़े माफिया का राज चलने लगा है। रूस की जनसंख्या ५० लाख कम हो गयी है। काफी लोग वहां से पलायन कर गए हैं।

यह अकारण नहीं कि रूस और सोवियत यूनियन को इस अकल्पनीय दुर्दशा में पहुंचाने वाले व्यक्ति की मौत पर हत्यारे राष्ट्रध्वजों के सिवा आंसू बहाने वाले आम लोग नहीं थे।

(Jan Vikalp, July,2007)

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